भारत के क्यों पीछे-पीछे इटली, पीएम मोदी से क्या चाहता है?
नई दिल्ली: इटली का ब्लू और स्पेस इकोनॉमी पर फोकस बढ़ा है। ब्लू इकोनॉमी का मतलब समुद्री संसाधनों का तरीके से इस्तेमाल करना है। वह भारत के साथ अंतरिक्ष और समुद्री संसाधनों के इस्तेमाल से जुड़े क्षेत्रों में मिलकर काम करना चाहता है। मुंबई के इंदिरा डॉक पर बीते दिनों ब्लू एंड स्पेस इकोनॉमी कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ। इसमें भारत और इटली के कई संस्थानों और कंपनियों ने हिस्सा लिया। इस कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन भारत में इटली के राजदूत एंटोनियो बार्टोली ने किया। भारत के बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की हालिया उपलब्धियों का जिक्र किया। इटली के उद्यम मंत्री एडोल्फो उर्सो ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।
उर्सो ने बताया कि 1964 में इटली ने अपना पहला सैटेलाइट सैन मार्को-1 लॉन्च किया था। इसके साथ ही इटली ऐसा करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया था। अब साठ साल बाद इटली के पास स्पेस इकोनॉमी के सभी क्षेत्रों में मानव संसाधन, तकनीकी और औद्योगिक कौशल मौजूद हैं।
कॉन्फ्रेंस के पहले पैनल का विषय था, ‘स्पेस: बाईलैटरल कोऑपरेशन एंड रीजनल फुटप्रिंट।’ यह पैनल स्पेस इकोनॉमी पर केंद्रित था। इसमें लियोनार्डो इंटरनेशनल के जनरल मैनेजर एनरिको सावियो ने कहा, ‘लियोनार्डो और उसकी सहायक कंपनियां अंतरिक्ष क्षेत्र में पूरी वैल्यू चेन का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह यूरोप और उसके बाहर इटली की भूमिका को मजबूत करता है। यह एक दीर्घकालिक रणनीतिक नजरिये का परिणाम है।’
सावियो के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौती यह है कि इस वैल्यू चेन को भारत जैसे देशों के औद्योगिक इकोसिस्टम में कैसे इंटीग्रेट किया जाए, जो पहले से ही अंतरिक्ष क्षेत्र में बहुत एक्टिव है। यह केवल तकनीकी पहलुओं का सवाल नहीं है। अलबत्ता, एक साथ विकास करने की इच्छा और प्रतिबद्धता का है। एक तरफ प्रतिस्पर्धा है तो दूसरी तरफ साझेदारी भी है। अगर हम आपसी अवसर पैदा करना चाहते हैं तो हमें एक-दूसरे पर भरोसा करना होगा। स्पष्ट और साझा उद्देश्य रखने होंगे। यह केवल अंतरिक्ष या समुद्री गतिविधियों पर ही लागू नहीं होता, बल्कि व्यापक पोर्टफोलियो पर लागू होता है।