अलग बांग्लादेश की दांस्ता ः नाम मुस्लिम पर दिल से हिंदू कहकर पाकिस्तानी फौज ने 1 रात में 7 हजार बंगाली मार डाले, भारतीय सेना ने 13 दिन में बनवाया बांग्लादेश
नई दिल्ली: 6 अप्रैल, 1971 को ढाका में मौजूद अमेरिका के कौंसुल जनरल ने ऑर्थर ब्लड ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय को एक सीक्रेट टेलीग्राम भेजा। उसमें उन्होंने पाकिस्तानी फौज के ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला मुसलमानों और हिंदुओं पर अत्याचार का जिक्र किया था। उनकी यह बात सही साबित हुई और पाकिस्तान महज 8 महीने बाद ही दो हिस्सों पाकिस्तान और बांग्लादेश के रूप में टूट गया। लेफ्टिनेंट कर्नल(रि.) जेएस सोढ़ी ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम से जुड़ी कुछ अनकही कहानियों को शेयर किया। जानते हैं पूरी कहानी।
जब रूसी राजदूत ने पाकिस्तान को दी थी चेतावनी
अगस्त, 1971 में तत्कालीन सोवियत संघ के अलेक्सी अलेक्सीयेविच रोडोयोनाव पाकिस्तान में राजदूत थे। उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान को एक सीक्रेट मैसेज भेजा। यह मैसेज सोवियत संघ के राष्ट्रपति की ओर से आया था। इसमें कहा गया था कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश के लिए राजनीतिक समाधान नहीं निकाला और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर पाकिस्तानी फौजों का अत्याचार नहीं थमा तो यह पाकिस्तान के लिए आत्मघाती साबित होगा। यह बात कुछ ही महीनों बाद सही साबित हुई। जब पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तान से आजाद हो गया।
ऑपरेशन सर्चलाइट क्या था, जिसमें की गई थी बर्बर इंतिहा
पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलन को रोकने के लिए मार्च 1971 में चलाया गया पाकिस्तानी फौज ने ऑपरेशन सर्चलाइट नाम से एक गुप्त सैन्य अभियान चलाया था। इस अभियान की योजना 19 मार्च, 1971 को मेजर जनरल खादिम हुसैन राजा और मेजर जनरल राव फरमान अली ने ढाका में बनाई थी। इस अभियान का मकसद पूर्वी पाकिस्तान के सभी प्रमुख शहरों पर नियंत्रण करना और अगले महीने के अंदर सभी बंगाली विरोध को खत्म करना था।
1 रात में ही पाक फौजों ने 7 हजार लोगों को मार डाला
एंथनी मस्कारेन्हास की किताब ‘द रेप ऑफ बांग्लादेश’ और अनवर पाशा की किताब ‘राइफल, रोटी, औरत’ में पाकिस्तानी फौजों की बर्बरता की कहानी लिखी गई है। इन्हीं के हवाले से बांग्लादेश लीगल एड एंड सर्विसेज ट्रस्ट (BLAST) में रिसर्चर तकबीर हुदा ने लिखा है कि 25 मार्च, 1971 की दुर्भाग्यपूर्ण रात को पाकिस्तानी सेना ने आधिकारिक तौर पर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार का अभियान शुरू किया, जिसमें मौत के दस्ते उतारे गए। इन दस्तों ने एक ही रात में 7,000 निहत्थे और निर्दोष बंगालियों को बेरहमी से मार डाला।
जब याह्या खान ने कहा-30 लाख लोगों को मार डालो
दरअसल, दिसंबर 1970 के पाकिस्तान के राष्ट्रीय चुनावों में मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग को अधिकांश वोट मिले थे और उसने बंगाल क्षेत्र में भारी जीत हासिल की थी। 22 फरवरी, 1971 को, पश्चिमी पाकिस्तान में सैन्य जनरलों ने अवामी लीग और उसके समर्थकों को कुचलने का फैसला किया। पाकिस्तानी लीडरशिप शुरू से यह मानती आई थी कि बुनियादी लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों की मांग करने वाले बंगालियों के खतरे को खत्म करने के लिए नरसंहार अभियान आवश्यक होगा। तब फरवरी, 1971 में ही राष्ट्रपति याह्या खान ने पूर्वी पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए फौज से कहा कि ‘उनमें से 30 लाख लोगों को मार डालो। और बाकी हमारे हाथों से मारे जाएंगे।’
खेतों, नदियों में युवकों की लाशें फेंक दी गईं
एंथनी मस्कारेन्हास की किताब ‘द रेप ऑफ बांग्लादेश’ के अनुसार, ऑपरेशन सर्चलाइट का मुख्य मकसद ढाका विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र थे, जो आंदोलन की रीढ़ थे। सैकड़ों की संख्या में उन्हें मार दिया गया। पाकिस्तानी सेना ने उन लोगों की तलाश की जो प्रतिरोध में शामिल होने की संभावना रखते थे-जैसे कि युवा लड़के। अगली सुबह, बड़ी संख्या में युवकों के शव खेतों में, नदियों में बहते हुए या सेना के शिविरों के पास मिले।
जो बचे रहेंगे वही असली मुसलमान होंगे
पाकिस्तान में रहने वाले ब्रिटिश पत्रकार एंथनी मास्करेनहास ने बंगाली नरसंहार की खबर सबसे पहले अंतररराष्ट्रीय मीडिया में दी थी। उनसे पाकिस्तानी सेना के एक मेजर ने कहा था-यह पवित्र और अपवित्र के बीच युद्ध है… यहां के लोगों के मुस्लिम नाम हो सकते हैं और वे खुद को मुसलमान कहते हैं। लेकिन वे दिल से हिंदू हैं। हम अब उन्हें काटकर अलग कर रहे हैं। जो बचे रहेंगे वे असली मुसलमान होंगे। हम उन्हें उर्दू भी सिखाएंगे।
पाकिस्तानी सेना ने जल्दबाजी में कइयों को जिंदा दफन कर डाला
पाकिस्तानी सेना ने सामूहिक कब्रें खोदीं, जहां लोगों को चाहे वे जीवित हों या मृत जल्दबाजी में दफ़ना दिया गया और बाद में बुलडोजर से गिरा दिया गया। अनवर पाशा ने अपने वृत्तचित्र उपन्यास ‘राइफल, रोटी, औरत’ में कुछ दफन किए गए लोगों की उंगलियों को जमीन के नीचे से छोटे पौधों की तरह बाहर निकलते हुए देखा, जो जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे, लेकिन बच नहीं पाए।
जब झुग्गियों में आग लगाकर जिंदा भून दिया गया
पाकिस्तानी फौजों के जुल्मों की इंतिहा तो तब हो गई, जब उन्होंने बांग्लादेश में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के घरों में आग लगा दी। फिर जब वे आधे जले हुए लोग चीखते हुए सड़कों पर भागते हुए बाहर निकले तो सेना ने उन्हें कर्फ्यू के आदेश का उल्लंघन करने के आरोप में गोलियों से भून दिया। बचे हुए लोगों ने बताया कि कैसे सड़कों, फुटपाथों और घरों के बरामदे पर जहां तक नजर जाती थी, अधजली लाशें पड़ी थीं।
बेटे को बचाने के लिए पिता बना ढाल, मशीनगनों ने भेद दिया
पाशा के अनुसार, एक इमारत की छत पर एक बेटे और एक पिता के शव के बारे में बयां किया है। उसमें पिता ने अपने प्यारे बेटे को बचाने के लिए अपने शरीर को उसके शरीर पर फैलाकर रक्षा करने की कोशिश की थी। मगर, अफसोस कि पिता की पूरी कोशिशों के बावजूद मशीन गन की गोलियां उन दोनों को भेद गईं।
पाकिस्तानी फौजों ने 30 लाख लोगों को मार डाला था
पूर्वी पाकिस्तान के अलगाव की जांच के लिए पाकिस्तान सरकार द्वारा स्थापित हमुदुर्रहमान आयोग की रिपोर्ट में पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई बर्बरता के बारे में लिखा गया है कि अनुमानित रूप से एक लाख से पांच लाख बाहरी, पश्चिमी पाकिस्तानी और देशभक्त बंगाली लोगों को मारा गया था। वहीं, बांग्लादेश के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना ने 30 लाख लोगों की हत्याएं की थीं। पाकिस्तानी सेना ने नरसंहार और महिलाओं पर यौन अत्याचार किए थे।
ऐसे हुई थी बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत की एंट्री
दरअसल, बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी और पाकिस्तानी फौज के बीच युद्ध में भारत की एंट्री तब हुई, जब 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने 11 भारतीय वायुसैनिक ठिकानों पर हवाई हमला कर दिया। नतीजतन तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए भारतीय सेना को पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी समूहों का समर्थन करने पर मंजूरी दे दी।
पाकिस्तान ने 93 हजार सैनिकों के साथ सरेंडर कर दिया
3 दिसंबर, 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हुआ और यह जंग 13 दिनों तक ही चल पाई। पाकिस्तानी फौज के हौसले पस्त हो गए। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने 16 दिसंबर को भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके अपनी हार मान ली थी। इस तरह से बांग्लादेश का निर्माण हुआ। पाकिस्तान की सेना ने लगभग 93,000 सैनिकों के साथ भारत के सामने सरेंडर किया था। यह अब तक की सबसे बड़ी जीत मानी जाती है। तभी से 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ऑपरेशन ट्राईडेंट और कराची के समुद्र में डुबो दी पाकिस्तानी पनडुब्बी
ऑपरेशन ट्राइडेंट की शुरुआत 4 दिसंबर, 1971 को हुई थी। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराकर बांग्लादेश को आज़ादी दिलाई थी। इस युद्ध में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी को नष्ट कर दिया था। भारत ने 6 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी थी।