राष्ट्रीय

दहशतगर्दों का स्वर्ग पाक

1947 में महान भारत की सरजमीं को अंग्रेजों की घिनौनी साजिश और मुस्लिम लीग के मजहबी जुनून से फैली नफरत के कारण 3 हिस्सों में बांट दिया गया। भारत के साथ-साथ पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान अस्तित्व में आए। 77 वर्षों में भारत हर क्षेत्र में विकास के पथ पर चल रहा है और कई क्षेत्रों में विकसित देशों का भी मुकाबला करने में समर्थ हो चुका है जबकि पाकिस्तान इस लंबे दौर के बाद भी मजलूमियत, महरूमियत, मुफलसी और गुरबत की दल-दल में बुरी तरह फंस चुका है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700 अरब डालर के करीब है जबकि पाकिस्तान का जून के महीने में केवल 4 अरब डालर था।

इसमें 2 अरब डॉलर सऊदी अरब, एक अरब डॉलर चीन का और बचा-खुचा पाकिस्तान का है। पाकिस्तान में ऊंची मुद्रास्फीति के कारण महंगाई सातवें आसमान को पार कर गई है। यह जबरदस्त व्यापारिक घाटे से भी गुजर रहा है और भारी कर्ज के बोझ तले दब चुका है। अब कोई भी देश इसे कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है। इसे केवल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इस संस्था द्वारा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए दिए गए सुझावों से इसकी कमर टूट रही है। 

भारत ने चांद पर तिरंगा लहरा दिया है जबकि पाकिस्तान के बहुसंख्यक लोग अभी भी गुजर-बसर की तलाश में उपयुक्त जमीन ढूंढ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के पिछडऩे के कारणो को जानने के लिए इसके इतिहास पर नजर सानी करना अति आवश्यक होगा। अलग होने के पश्चात पाकिस्तान के हुकमरानों ने मुल्क में शांति, सुरक्षा, आर्थिक विकास, लोगों को नए अवसर प्रदान करने, भारत के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाने और समाज को नई दिशा प्रदान करने की बजाय अहंकारवाद, अंधराष्ट्रीयता, संकीर्ण कौम-परस्ती और कट्टरवाद के पागल घोड़े पर सवार होकर आजादी के एक महीने बाद भारत के जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। हकीकत में यहीं से भारत-पाकिस्तान दुश्मनी की बुनियाद रख दी गई।  
भारत में 1947 से 1989 तक करीब-करीब स्थिर सरकारें  रहीं जो प्रगतिशील आधुनिकीकरण तथा पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए नई-नई नीतियों का निर्माण करती रहीं। जबकि पाकिस्तान में  पहले 10 वर्षों में ही राजनीतिक उथल-पुथल से अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया। विकास रुक गया और प्रशासनिक व्यवस्था भी बिगडऩे लगी।

1957 में फौजी राज शुरू हुआ जो करीब-करीब 30 वर्ष तक चला। जबकि भारत में प्रजातांत्रिक पद्धति प्रफुल्लित होती रही और आज भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक पद्धति सम्पन्न सम्मानजनक राष्ट्र है। पाकिस्तान के फौजी जरनैलों और सियासतदानों ने खुलकर लूट-खसूट की जबकि भारत इस मामले में बड़ा सौभाग्यशाली रहा। अमरीका की कठपुतली पाकिस्तान ने जनरल जिया-उल-हक के नेतृत्व में अफगानिस्तान से रूस को निकालने के लिए तालिबानियों की कई फैक्ट्रियां लगवा लीं जहां उन्हें विदेशी हथियार, फौजी प्रशिक्षण और अमरीकी डालरों से मालामाल कर दिया। इस तरह 10 वर्ष पाकिस्तान की सारी तवज्जो अफगानिस्तान पर लगी रही। देश में उद्योग बर्बाद होने लगे और कई अन्य क्षेत्रों में भी पाकिस्तान विश्व के छोटे-छोटे देशों से भी पिछडऩे लगा। रूस तो अफगानिस्तान से निकल गया। अमरीका को मनचाही जीत हासिल हुई पर पाकिस्तान बर्बादी की कगार पर पहुंच गया। इन आतंकवादियों ने  पहले भारत के पंजाब और फिर जम्मू-कश्मीर में दहशत का माहौल पैदा कर दिया जो आज भी थोड़े-थोड़े समय के बाद चलता रहता है।

पाकिस्तानी हुक्मरानों की नकारात्मक नीतियों से सकारात्मकता, सृजनात्मकता और रचनात्मकता को गहरा धक्का लगा। बिना किसी उकसावे के पाक ने  1947,1965,1971,1999 में भारत पर आक्रमण किए जिससे उसकी आर्थिकता कमजोर हुई और विश्व में छवि भी धूमिल हुई। विश्व के 195 देशो में केवल पाकिस्तान है जहां आतंकवादियों को प्रेषित और पोषित किया जाता है और पड़ोसी देशों को अस्थिर करने, परेशान करने, विकास की गति को रोकने के लिए इन आतंकवादियो को भेजा जाता है। हकीकत में पाकिस्तान दहशतगर्दों का स्वर्ग है। जिन आतंकवादियों के जरिए दूसरों को परेशान करता था आज वही आतंकवादी उनके गले की फांस बने हुए हैं। भारत की सरकार और लोग दिलोजान से चाहते हैं कि पाकिस्तान में शांति और समृद्धि रहे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बने, व्यापार खुले, लोग एक-दूसरे देश में आएं जाएं क्योंकि हमारी संस्कृति एक है, जमीं भी एक है और हमारे पूर्वज भी एक हैं और समस्याएं भी एक जैसी हैं। 
पाकिस्तान आवाम के लिए कुछ पंक्तियां 
अर्ज करता हूं:
जहां जुल्मत का राज है बरसों से, 
जहां इंसाफ के दीप क्यों नहीं जलते।
यही सवाल हर दिल में उठता है, 
जहां फरियाद के लब क्यों नहीं हिलते।
पूछती है शमां हर घड़ी उम्मीद की, 
यह बेनूर हालात संवर क्यों नहीं जाते।-प्रो. दरबारी लाल

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