एक बार फिर जासूसी उपकरण ‘पेगासस
इजरायल के जासूसी उपकरण ‘पेगासस’ का अध्याय एक बार फिर खुल गया है। अमरीकी अदालत में ‘व्हाट्स ऐप’ की बड़ी जीत हुई है और इजरायली कंपनी एनएसओ समूह को हैकिंग का दोषी करार दिया गया है। जासूसी सॉफ्टवेयर के जरिए दुनिया भर में व्हाट्स ऐप के 1400 से अधिक प्रयोगकर्ताओं को निशाना बनाया गया। 2021 में ‘पेगासस’ का मामला भारत में भी गूंजा था, जब आरोप लगाए गए कि 300 से अधिक मोबाइल फोन में जासूसी उपकरण इंस्टॉल किया गया। उनमें मोदी सरकार के मौजूदा दो मंत्रियों, तीन विपक्षी नेताओं, एक संवैधानिक अथॉरिटी, कई पत्रकारों और उद्योगपतियों को निशाना बनाया गया। संसद में वह जासूसी कांड खूब उछला और विपक्ष ने सदनों की कार्यवाही चलने नहीं दी। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी आरोप लगाया था कि उनके मोबाइल फोन को हैक किया गया और जासूसी सॉफ्टवेयर के जरिए सरकार उन पर निगरानी रखे थी। मामला सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा, लेकिन कुछ ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आया। सर्वोच्च अदालत ने विशेषज्ञों की जो समिति गठित की थी, उसकी रपट भी सार्वजनिक नहीं की गई। अलबत्ता अगस्त, 2022 में तकनीकी विशेषज्ञों की उस समिति का यह कथन जरूर सामने आया कि जिन मोबाइल फोन की जांच उसने की है, उनमें जासूसी उपकरण का कोई निर्णायक साक्ष्य नहीं पाया गया, लेकिन उस जांच-प्रक्रिया में केंद्र सरकार ने सहयोग नहीं दिया। यानी दाल में कुछ काला जरूर है। अब मामला इजरायली कंपनी एनएसओ और व्हाट्स ऐप के बीच का है।
एनएसओ का तर्क है कि पेगासस कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को अपराध से लडऩे और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने में मदद करता है। उसकी तकनीक का मकसद आतंकवादियों और कठोर अपराधियों को पकडऩे में मदद करना है। व्हाट्स ऐप ने 2019 में एनएसओ पर निषेधाज्ञा और हर्जाने की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि बिना अनुमति के व्हाट्स ऐप सर्वर तक उसने पहुंच बनाई और प्रयोगकर्ताओं के मोबाइल पर पेगासस सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया। इससे पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं सहित 1400 से अधिक लोगों की निगरानी की गई। व्हाट्स ऐप के प्रमुख ने अदालत के फैसले को निजता और गोपनीयता की बड़ी जीत माना है। माना जाता रहा है कि स्पाइवेयर कंपनियां अपने गैर-कानूनी कामों के लिए जवाबदेही से बच नहीं सकतीं। भारत के संदर्भ में गृह मंत्रालय ने लोकसभा में खुलासा किया था कि केंद्र और राज्य सरकारें आईटी कानून, 2000 और भारतीय टेलीग्राफ कानून, 1885 के अनुसार, सूचनाओं को ‘इंटरसेप्ट’ करने, ‘मॉनीटर करने’ और ‘डिकोड’ करने को अधिकृत हैं। इस संदर्भ में 10 एजेंसियों को अधिकृत किया गया है, लेकिन अच्छी तरह काम कर रहे लोकतंत्र की तरह भारत में कोई स्वतंत्र निगरानी, निरीक्षण नहीं है। कोई राष्ट्रीय सुरक्षा कानून भी नहीं है, लिहाजा जासूसी के जरिए सूचनाएं हासिल करने में कानून और शक्तियों के दुरुपयोग भी होते रहे हैं। सर्वोच्च अदालत वाली कमेटी ने भी जिन मोबाइल फोन की जांच की थी और स्पाईवेयर की मौजूदगी मानी थी, लेकिन वे पेगासस ही थे, कमेटी ऐसा नहीं मानती। निजता और सुरक्षा के बीच पेगासस सरीखे जासूसी उपकरणों की व्याख्या की जानी चाहिए।