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ब्याज दर की कटौती, महंगाई बाधक

रिजर्व बैंक ने अपने ताजा अनुमान में मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही के लिए सात फीसदी और अंतिम तिमाही के लिए 7.4 प्रतिशत जताया है, जबकि मुद्रास्फीति के इस वर्ष 4.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.8 फीसदी और चौथी तिमाही में 4.2 प्रतिशत रहने का उसने अनुमान जताया है.

मौद्रिक नीति समिति की बैठक आज संपन्न हो जायेगी, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा ब्याज दर में कटौती होगा, क्योंकि एक लंबे समय से रेपो दर 6.5 प्रतिशत पर बरकरार है. रेपो वह दर होती है, जिस दर पर रिजर्व बैंक व्यवसायिक बैंकों को कर्ज देता है. रेपो दर यथावत रहने के कारण बैंकों की ऋण दर उच्च स्तर पर बनी हुई है. महंगी दर पर उधारी मिलने से ऋण का उठाव कम है. कंपनियों के पास पूंजी की कमी है, जिससे देश में आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ गयी हैं. ब्याज दर में कटौती की मांग खुद केंद्रीय मंत्रियों की ओर से की जा रही है. निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल, दोनों ने ब्याज दर घटाने की मांग की है, क्योंकि तभी व्यापार और उद्योग क्षेत्र कर्ज लेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था की गाड़ी आगे चलेगी. लेकिन ऊंची मुद्रास्फीति को देखते हुए मानना मुश्किल है कि रिजर्व बैंक रेपो दर में कमी करेगा ही.

रिजर्व बैंक ने अपने ताजा अनुमान में मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही के लिए सात फीसदी और अंतिम तिमाही के लिए 7.4 प्रतिशत जताया है, जबकि मुद्रास्फीति के इस वर्ष 4.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.8 फीसदी और चौथी तिमाही में 4.2 प्रतिशत रहने का उसने अनुमान जताया है. वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता, भू-राजनैतिक संकट की निरंतरता, मानसून के अनुकूल न रहने, खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमत और वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल में तेजी के कारण मुद्रास्फीति की दर उच्च स्तर पर बनी हुई है.

अक्तूबर में तो मुद्रास्फीति 14 महीनों के उच्च स्तर पर, यानी 6.21 प्रतिशत थी, जबकि सितंबर में यह 5.5 फीसदी थी. यानी विगत दो महीनों में औसत मुद्रास्फीति दर 5.9 प्रतिशत रही है. रिजर्व बैंक ने अंतिम बार फरवरी 2023 में रेपो दर में 0.25 आधार अंकों की वृद्धि की थी, जिससे यह बढ़कर 6.50 फीसदी हो गयी थी. कोरोना से पहले फरवरी, 2020 में रेपो दर 5.15 प्रतिशत थी. रिजर्व बैंक ने मार्च से अक्तूबर, 2020 के बीच रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की कटौती की थी. उसके बाद मौद्रिक नीति समिति ने अपनी 10 बैठकों में रेपो दर में पांच बार वृद्धि की, चार बार इसे यथावत रखा और एक बार अगस्त, 2022 में 0.50 आधार अंकों की कटौती की.


चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में कमी आयी है, इसके बावजूद वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की जीडीपी वृद्धि अनुमान को बढ़ाकर 7.1 प्रतिशत कर दिया है, जो पहले 6.8 फीसदी और 6.1 प्रतिशत थी. मूडीज ने हालांकि 2025 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि अनुमान को 6.5 फीसदी पर यथावत रखा है और 2026 के लिए जीडीपी वृद्धि दर अनुमान 6.6 प्रतिशत जताया है. उसने अगले दो वर्षों में भारत में मुद्रास्फीति का अनुमान क्रमश: 4.5 प्रतिशत और 4.1 फीसदी जताया है. मुद्रास्फीति बढ़ने पर वस्तु एवं सेवाओं की कीमतों में इजाफा होता है, जिससे व्यक्ति की क्रय शक्ति कम हो जाती है और वस्तुओं व सेवाओं की मांग भी घट जाती है. बिक्री घटने से उत्पादन में कमी आती है, कंपनी को घाटा होता है, कामगारों की छंटनी होती है और रोजगार सृजन में कमी आती है. यानी मुद्रास्फीति को कम करने से ही विकास की गाड़ी आगे बढ़ सकती है.

रेपो दर फरवरी, 2023 से 6.5 प्रतिशत के स्तर पर कायम है, जिस कारण उधारी दर भी उच्च स्तर पर बनी हुई है. इससे 15 नवंबर तक ऋण उठाव घटकर 11.1 प्रतिशत रह गया, जो विगत वर्ष की इसी अवधि में 20.6 प्रतिशत था. इस अवधि में जमा वृद्धि दर में भी उल्लेखनीय कमी आयी है और इसकी औसत वृद्धि दर मार्च से महज 6.7 प्रतिशत है. बैंक जमा में आयी कमी की भरपाई के लिए बैंक सरकारी बॉन्ड्स को परिपक्वता तिथि से पहले ही भुना रहे हैं. पूंजी की किल्लत की वजह से उधारी के उठाव में भी उल्लेखनीय कमी आयी है, क्योंकि पूंजी की कमी के कारण बैंकों को कर्ज देने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.


फिलवक्त, जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गयी है, जबकि मुद्रास्फीति ऊंची है. अगले दो वित्त वर्षों में मुद्रास्फीति के रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सहनशीलता सीमा के अंदर रहने के आसार हैं, लेकिन मुद्रास्फीति के कई दुष्परिणाम होने के कारण मौद्रिक नीति समिति रेपो दर में कटौती करने से बच रही है. रेपो दर के उच्च स्तर पर बने रहने के कारण उधारी दर भी उच्च स्तर पर बनी हुई है, जिसके कारण खुदरा और कॉरपोरेट ऋण में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है और पूंजी की कमी के कारण आर्थिक गतिविधियों में स्थिरता बनी हुई है, जिससे विकास दर नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है. चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में कमी आने का यह एक महत्वपूर्ण कारण है. केंद्रीय बैंक अब भी महंगाई की चाल पर पैनी निगाह बनाये हुए है, क्योंकि यह विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है. ऐसे में, उम्मीद यह है कि मौद्रिक नीति समिति इस बार भी रेपो दर को 6.5 प्रतिशत के स्तर पर यथावत रख सकती है.

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