बटेंगे तो कटेंगे के नारे से क्या एनडीए में पड़ गई है फूट?
नई दिल्ली : राजनीति में नारों की अपनी एक अलग अहमियत होती है। समय-समय पर राजनीतिक दल विरोधियों के खिलाफ और अपने हित में नारों को लॉन्च करते रहे हैं। हरियाणा के बाद इन दिनों महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ काफी सुर्खियों में हैं। योगी के दिए नारे बटेंगे तो कटेंगे पर महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश में सियासत तेज हो गई है।
बीजेपी जहां इस नारे के साथ चुनावों में आगे बढ़ती दिख रही है तो वहीं विपक्ष की ओर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हालांकि अब इस नारे के खिलाफ एनडीए के भीतर भी आवाज उठ रही है। खास बात है कि एनडीए के सहयोगियों अजित पवार के अलावा बीजेपी के कुछ नेता भी इस नारे पर आपत्ति जता चुके हैं।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे का विरोध किया है। अजित ने इस नारे को महाराष्ट्र की वैचारिक विरासत से अलग बताया। अजित पवार ने कहा कि (योगी का) ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारा उचित नहीं है। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में लोगों की सोच अलग है, लेकिन ऐसे बयान यहां नहीं चलते। मेरी राय में महाराष्ट्र में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कोई मायने नहीं रखता है। महाराष्ट्र छत्रपति शाहू महाराज, महात्मा ज्योतिराव फुले और शिवाजी महाराज का राज्य है। महाराष्ट्र के लोग अलग हैं और वे अलग तरह से सोचते हैं। अगर कोई शाहू, शिवाजी, फुले और आंबेडकर की विचारधारा से भटकेगा, तो महाराष्ट्र उसे नहीं बख्शेगा।
बीजेपी के सांसद और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कहा है कि ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा सही नहीं है, यह अप्रासंगिक है और लोग इसकी सराहना भी नहीं करेंगे। एक इंटरव्य में चव्हाण ने कहा कि यह भी कहा कि वह ‘वोट जिहाद बनाम धर्म युद्ध’ की बयानबाजी को ज्यादा महत्व नहीं देते क्योंकि बीजेपी और सत्तारूढ़ महायुति की नीति देश और महाराष्ट्र का विकास है। चव्हाण लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहने के बाद इस साल फरवरी में भाजपा में शामिल हुए थे। बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट दिया था।
बीजेपी नेता पंकजा मुण्डे ने बंटेंगे तो कंटेगे नारे का विरोध किया है। पंकजा का कहना है कि वह इस नारे को सपोर्ट नहीं करती हैं। साथ ही महाराष्ट्र को इसकी जरूरत नहीं हैं। पंकजा ने कहा, ‘सच कहें, तो मेरी राजनीति अलग है। मैं सिर्फ इसलिए इसका समर्थन नहीं करूंगा कि मैं उसी पार्टी से हूं। उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि हमें विकास पर ही काम करना चाहिए। एक नेता का काम इस भूमि पर प्रत्येक जीवित व्यक्ति को अपना बनाना है। इसलिए, हमें महाराष्ट्र में ऐसा कोई विषय लाने की आवश्यकता नहीं है।
वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि उनकी पार्टी का नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ महाराष्ट्र विकास आघाडी (एमवीए) के चुनाव प्रचार अभियान के जवाब में गढ़ा गया है। बीजेपी नेता ने दावा किया कि उनके सहयोगियों अशोक चव्हाण और पंकजा मुंडे के साथ-साथ उप मुख्यमंत्री अजित पवार इसके ‘मूल’ अर्थ को समझने में विफल रहे।
बीजेपी की सहयोगी जेडीयू और आरएलडी भी बंटेंगे तो कटेंगे के विरोध में दिख रही है। जेडीयू के एमएलसी गुलाम गौस ने हाल ही में पटना में कहा था कि बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे की देश को कोई जरूरत नहीं है। विधान परिषद् सदस्य गौस का कहना था कि इस नारे की जरूरत उन लोगों को है जिन्हें सांप्रदाय के नाम पर वोट चाहिए। गौस ने साफ कहा कि जब देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री हिंदू हैं तो देश में हिंदू असुरक्षित कैसे हो गए हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय लोक दल ने भी इस स्लोगन पर अलग रुख दिखाया। आरएलडी चीफ जयंत चौधरी से चुनाव प्रचार के दौरान जब सीएम योगी के नारे को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि ये उनकी बात है।
‘बंटेंगे तो कटेंगे’ इन दिनों देश भर में छाया हुआ है। बीते दिनों संघ परिवार ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी। इसे लेकर अब होर्डिंग दिखने लगे हैं। पोस्टर के जरिए भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को धार मिल रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने आगरा में एक कार्यक्रम में कहा था कि आप देख रहे हैं बांग्लादेश में क्या हो रहा है? वे गलतियां यहां नहीं होनी चाहिए। बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे, सुरक्षित रहेंगे और समृद्धि की पराकाष्ठा पर पहुंचेंगे। इसके बाद यह स्लोगन तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है।