महाराष्ट्र

फडणवीस तय थे, फिर क्यों हुई देरी?

अभिमन्यु शितोले
BJP के दिग्गज नेता देवेंद्र फडणवीस ने तीसरी बार महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बन कई रेकॉर्ड बना दिए हैं। वह तीसरी बार इस पद पर बैठने वाले पहले गैर-कांग्रेसी नेता हैं। उन्होंने BJP की तरफ से भी सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री रहने वाले नेताओं के क्लब में एंट्री कर ली है। इस क्लब में अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान, अर्जुन मुंडा और बीएस येदियुरप्पा ही थे।

सबका साथ
विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही तय था कि फडणवीस को मुख्यमंत्री बनना है। संघ उनके समर्थन में था। पीएम नरेंद्र मोदी उनके समर्थन में थे। चुनकर आए ज्यादातर विधायक उनके समर्थन में थे। यहां तक कि BJP नेतृत्व वाले गठबंधन महायुति में शामिल दल NCP (अजित पवार), शिवसेना (एकनाथ शिंदे), RPI (रामदास आठवले), सब फडणवीस के फेवर में थे। फिर भी फडणवीस की ताजपोशी में 13 दिन लग गए।

इस वजह से हुई देरी
इसकी सबसे बड़ी वजह रही महायुति में मंत्री पदों के पोर्टफोलियो का बंटवारा तय नहीं हो पाना। एकनाथ शिंदे BJP का सीएम बनाने को तो तैयार थे, लेकिन खुद डिप्टी सीएम बनने में हिचक रहे थे। साथ ही, वह अपनी पार्टी के लिए गृह, राजस्व और नगर विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मांग रहे थे। BJP गृह मंत्रालय छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। इसी बीच शिंदे बीमार हो गए और अपने गांव चले गए। इससे यह मेसेज गया कि वह नाराज हैं। इसी दरम्यान BJP ने घोषणा कर दी कि महाराष्ट्र की नई सरकार का शपथ ग्रहण 5 दिसंबर को होगा और 4 दिसंबर को विधायक दल की बैठक में पार्टी अपना मुख्यमंत्री चुनेगी। यह एक तरह से शिंदे के लिए अल्टीमेटम भी था। इसका असर हुआ। शिंदे गांव से लौटे, अपना इलाज भी कराया और सरकार गठन की प्रक्रिया आगे बढ़ी।

BJP में असमंजस
BJP में भी फडणवीस को फिर से मुख्यमंत्री बनाने को लेकर ऊहापोह की स्थिति थी। सोशल इंजिनियरिंग का गणित उलझा हुआ है। महाराष्ट्र में मराठा डॉमिनेट करते हैं, वहीं ओबीसी भी बड़ी ताकत हैं। दलित खासकर महाराष्ट्र का नवबौद्ध संगठित और राजनीतिक रूप से जागरूक है। ऐसे में क्या राज्य को फडणवीस के रूप में ब्राह्मण सीएम दिया जाए, यह चर्चा राजनीतिक सर्कल में आम थी। पार्टी के भीतर भी मराठा और ओबीसी नेता इसे हवा दे रहे थे।

क्या काम आया
देवेंद्र फडणवीस के पक्ष में उनकी मेहनत, 132 सीटों की बंपर जीत, उनके विरोध में किसी के खुलकर न बोल पाने की मजबूरी और संघ का समर्थन रहा। रिजल्ट के दूसरे ही दिन फडणवीस नागपुर संघ मुख्यालय में सरसंघचालक मोहन भागवत से मिलने गए थे। दूसरी बात यह थी कि फडणवीस के अलावा BJP के पास ऐसा कोई और नेता नहीं था, जो तीन दलों की सरकार का सक्षम नेतृत्व कर सके। लिहाजा BJP नेतृत्व ने सोशल इंजिनियरिंग करने के बजाए मेरिट पर फैसला लिया।

गलती की भरपाई
जब फडणवीस को सीएम पद से हटाकर डिप्टी सीएम बनाया गया तो पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को यह पसंद नहीं आया था। BJP ने उसी गलती की भरपाई की। फिर, जिस नेता के नेतृत्व में प्रचंड जीत मिली, अगर उसे सीएम न बनाया जाता तो कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ता। देवेंद्र को दिल से मेहनत करने का इनाम मिला है।

अगला लक्ष्य
नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आने के बाद जब शत-प्रतिशत BJP की संकल्पना पर अमल शुरू हुआ तो इसका एक मतलब कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों का सफाया भी था। इसके लिए महाराष्ट्र और यूपी को पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर चुना गया था। BJP ने यूपी में कांग्रेस, बीएसपी को साफ और एसपी को हाफ करने में कामयाबी पा ली है। जहां तक सवाल महाराष्ट्र का है, तो यहां दो ही बड़ी ताकतें थीं – शिवसेना और शरद पवार। BJP ने दोनों को तोड़ दिया है। कांग्रेस अपनी ही अंदरूनी बीमारियों से ग्रस्त होकर कमजोर है। ऐसे में अब BJP का अगला लक्ष्य मुंबई महानगरपालिका पर कब्जा करना होगा।

मुंबई की लड़ाई
मुंबई महानगरपालिका का सालाना बजट करीब 60 हजार करोड़ रुपये होता है, कई राज्यों के बजट से ज्यादा। इसी से इसका महत्व समझ सकते हैं। पिछले 30 साल से इस पर बालासाहेब और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना का कब्जा है। 2017 तक BJP भी शिवसेना के साथ मुंबई महानगर पालिका की सत्ता में भागीदार रही। 2017 में दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ीं और शिवसेना कुछ सीट के अंतर से BJP से आगे निकल गई।

अगले चुनाव का इंतजार
2017 के बाद से मुंबई महानगरपालिका समेत महाराष्ट्र की 51 महानगर पालिकाओं के चुनाव नहीं हुए हैं। मामला ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण का फंसा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है। पिछले चार-पांच साल से राज्य सरकार ही IAS अफसरों को प्रशासक नियुक्त कर इन महानगर पालिकाओं पर राज कर रही है। अब अगर चुनाव का रास्ता साफ हुआ तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना को खत्म करने के लिए BJP सबसे पहले मुंबई महानगर पालिका पर कब्जा करना चाहेगी। उसकी मदद के लिए एकनाथ शिंदे की शिवसेना तो है ही। हालांकि BJP और फडणवीस आने वाले दिनों में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी को सत्ता व राजनीति में कितना स्पेस देंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।

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