संपादकीय

जलवायु कोष का सम्मेलन, क्रांतिकारी प्रयास निरंतर जारी रहें

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन का सालाना सम्मेलन ‘कॉप 29’ अजरबेजान की राजधानी बाकू में 11 नवंबर से शुरू हुआ है। सम्मेलन और संवाद करीब 15 दिनों तक चलेंगे। सम्मेलन का बुनियादी थीम ‘वित्तपोषण’ तय किया गया है। करीब 15 साल के बाद जलवायु कोष और संसाधनों के दिशा-निर्देश तय किए जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के क्रांतिकारी प्रयास निरंतर जारी रहें, उनके लिए आर्थिक संसाधनों की ऐसी चिंता पहली बार की गई है। यह सिर्फ विकासशील, गरीब, पिछड़े देशों की ही समस्या नहीं है, बल्कि बड़े और विकसित देश भी चक्रवात, तूफान, बाढ़ जैसी बारिश, मरुस्थल जैसे सूखे और बढ़ती गर्मी को झेलते रहे हैं। वहां भी व्यापक नुकसान होता है, लोग हताहत होते हैं। जलवायु की गर्मी और निरंतर परिवर्तन वैश्विक समस्या है। जब ‘कॉप 29’ का सम्मेलन आरंभ हुआ है, तब दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका में डोनाल्ड टं्रप नए राष्ट्रपति चुने गए हैं। टं्रप ने पिछले कार्यकाल में ‘पेरिस जलवायु समझौते’ को खारिज करते हुए अमरीका को उससे अलग कर लिया था। इस बार जब राष्ट्रपति टं्रप का दूसरा कार्यकाल शुरू होगा, तब भी अमरीका की सोच और रवैया पूर्ववत ही होगा, ऐसे संकेत मिल रहे हैं। ‘कॉप 29’ के सामने अनिश्चित भविष्य और वित्तीय संकट हैं। जलवायु परिवर्तन के 2009 के ‘कोपेनहेगन सम्मेलन’ के दौरान तय किया गया था कि विकसित देश 2020 तक 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष का कोष जुटाएंगे। उससे कमजोर, गरीब, विकासशील देशों की मदद की जाएगी, ताकि वे जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को संबोधित कर सकें। 2022 तक लक्ष्य आंशिक तौर पर ही हासिल किया जा सका। इस दौरान ‘ग्लोबल साउथ’ के वित्तीय बोझ उससे कई गुना बढ़ गए, जिसके अनुमान ‘कोपेनहेगन सम्मेलन’ के दौरान लगाए गए थे। ‘कॉप 29’ बाकू में नया वित्तीय लक्ष्य तय करेगा। चूंकि अमरीका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सबसे अधिक ‘ग्रीन हाउस गैसों’ का उत्सर्जन भी करता है, लिहाजा अमरीका को अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए।

यदि ऐसा होता है और अमरीका जलवायु परिवर्तन समझौते से अलग रहता है, तो ‘कॉप 29’ के लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकता। इस बार चीन और खाड़ी देशों के वित्तीय योगदान के भी प्रयास किए जा रहे हैं। जो देश ऐसे योगदान से इंकार करते रहे हैं, क्योंकि उन देशों के लिए जलवायु संकट के हालात नहीं हैं, उनसे भी आर्थिक मदद मांगी जाएगी। उन देशों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अमीर पश्चिमी देशों की तुलना में नगण्य-सा है। तेल और गैस का योजनाबद्ध विस्तार का आधे से ज्यादा हिस्सा पांच अमीर देशों का ही है। यह गौरतलब रहेगा कि बाकू सम्मेलन के दौरान भू-राजनीतिक न्याय, विकास और कर्ज सरीखे मुद्दों पर क्या संवाद होता है और क्या निष्कर्ष सामने आते हैं? लेकिन यह बिल्कुल ही ‘विनाश और अंधकार’ की स्थिति नहीं है। ‘कॉप फेमवर्क’ के समानांतर निजी क्षेत्र ने भी अपनी प्रतिबद्धताएं निभाई हैं। सरकारों और जनहितैषी वर्ग ने भी काम किए हैं। नवीकरणीय ऊर्जा पहले की अपेक्षा सस्ती है। सौर ऊर्जा भी पिछले दशक की तुलना में 90 फीसदी सस्ती हुई है। बैटरी भंडारण और पवन ऊर्जा में भी नाटकीय सुधार हुए हैं। चीन का उत्सर्जन चरम पर पहुंच चुका है और अब दशक के अंत तक कम होना शुरू हो जाएगा। फिर भी ये विकास, सुधार और प्रयास जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के सामने ‘बौने’ हैं। बाकू सम्मेलन इस मुद्दे पर बंटे हुए विश्व को एकजुट करने का प्रयास साबित होगा, वैश्विक हित सामूहिक होंगे, यह 15 दिन के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा। इस बार सम्मेलन ज्यादा मजबूत आधार पर शुरू हुआ है, संवाद भी सशक्त रूप से होंगे। अभी तक कॉप के प्रतिनिधि एक खास तरह का कोष गठित करने पर सहमत हुए हैं। भारत यह मांग करने में अग्रसर रहा है कि देशों को 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर का कोष जुटाना चाहिए। भारत और चीन समेत कई देश जलवायु कोष को लेकर सख्त संवाद कर सकते हैं। यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों की भी इच्छा है कि प्रति वर्ष एक ट्रिलियन डॉलर का कोष जुटाया जाए, ताकि गरीब, पिछड़े, संवेदनशील देशों को जलवायु परिवर्तन के थपेड़ों से बचाया जा सके। बेहतर यह होगा कि विकसित देश अपने दायित्वों से दूर न भागें। विशेषकर अमरीका से अपेक्षा रहेगी कि वह अपने दायित्वों को निभाएं। यह एक ऐसा मसला है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग से ही सुलझाया जा सकता है। आशा है कि विकसित देश विकासशील देशों की समस्याओं और अपेक्षाओं को समझेंगे।

Show More

Daily Live Chhattisgarh

Daily Live CG यह एक हिंदी वेब न्यूज़ पोर्टल है जिसमें ब्रेकिंग न्यूज़ के अलावा राजनीति, प्रशासन, ट्रेंडिंग न्यूज, बॉलीवुड, बिजनेस, रोजगार तथा टेक्नोलॉजी से संबंधित खबरें पोस्ट की जाती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button