संपादकीय

छोटा हिमाचल, सबक बड़े-4

हिमाचल के समग्र राजनीतिक परिदृश्य को चुनाव परिणामों के बाद तय करना होगा कि जनता ने सुना क्या और सुनाया क्या। जनता ने अपने अधिकारों, सियासत के नारों, सरकार के वादों और केंद्र पर निर्भर पुरस्कारों को सुना है। इसी जनता ने अपने नुमाइंदों के मार्फत हिमाचल व केंद्र में आने वाली सरकार को बहुत कुछ सुनाया भी है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से पांचवीं बार अनुराग ठाकुर की ताजपोशी के आगे बाकी सांसद फीके साबित हुए हैं। चाहे शांता कुमार हों या किशन कपूर, इनके दौर से कहीं आगे अनुराग ठाकुर निकले हैं तो समूचे प्रदेश के लिए सोचने वाला एक अदद केंद्रीय मंत्री चाहिए। बेशक अनुराग ठाकुर का पद और कद हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के लिए बहुत कुछ कर गया, लेकिन उन्हें पूरे प्रदेश का नेता बनना है, तो रेल-हवाई विस्तार के अलावा पर्यटन, खेल पर्यटन, धार्मिक पर्यटन व औद्योगिक विस्तार की परियोजनाओं को अपने संसदीय क्षेत्र से बाहर भी देखना होगा। जरूरी नहीं कि रेल विस्तार करते हुए केवल हमीरपुर ट्रेन पर चढ़ा जाए। आसानी से अगर अंब-अंदौरा तक पहुंची ट्रेन को नब्बे डिग्री उत्तर की ओर बढ़ाया जाए तो केंद्रीय हिमाचल में रेल विस्तार ज्वालामुखी के मार्फत, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर व मंडी तक पहुंचेगा। इसी तरह रानीताल से मुबारकपुर तक प्रस्तावित फोरलेन परियोजना के ताले खोलने पड़ेंगे। आश्चर्य यह कि केंद्रीय मंत्री रहते हुए भी वह प्रदेश के खेल ढांचे तथा रेडियो-टीवी विस्तार में वांछित नहीं कर पाए। नई सरकार की संभावना में, भाजपा की सत्ता में उनका स्थान निस्संदेह तरक्की पर रहेगा, लेकिन प्रदेश की निगाह में उनका रुतबा इस पारी में व्यापकता देखना चाहता है। यह चुनौती बाकी सांसदों के लिए भी रहेगी कि वे अपने-अपने संसदीय क्षेत्रों में कुछ न कुछ करके दिखाएं। अगर चारों सांसद प्रदेश के समग्र विकास में सोचें, विशेष आर्थिक या रेलवे पैकेज की मांग करें और पंजाब पुनर्गठन की बंद फाइलों से हिमाचल के हितों को मुक्त कराएं, तो सौ फीसदी परिणाम देकर भाजपा को जितवाने के मायने भी सफल होंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए और यह भाजपा को याद रखना होगा कि कांगड़ा ने आनंद शर्मा जैसे कद्दवार, अनुभवी तथा अपने समय के सफल केंद्रीय मंत्री के बजाय नए नवेले डा. राजीव भारद्वाज पर मोहर लगाई है।

उन्हें शांता कुमार की राजनीतिक विरासत मिल रही है, तो पूर्व केंद्रीय मंत्री की ड्रीम परियोजनाओं को धरातल पर उतारना होगा। भले ही हिमाचल ने कंगना रणोत को हल्के से लिया, लेकिन जीतने के बाद वह अपनी प्राथमिकताएं गिन रही हैं। वह स्वास्थ्य, शिक्षा के अलावा कनेक्टिविटी पर जोर दे रही हैं। मंडी व कुल्लू जैसे शहरों को भविष्य की स्मार्ट सिटी बनाना चाहती हैं, तो उन्हें अपनी सरकार की प्रथम घोषणाओं में देश की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं को पुनर्जीवित करवाते हुए यह आदेश पारित करवाना होगा कि हर संसदीय क्षेत्र में कम से कम एक स्मार्ट सिटी बनेगी। इसी के साथ कांगड़ा व शिमला के सांसदों को धर्मशाला व शिमला की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का कार्यकाल बढ़ाते हुए इनके विभिन्न लक्ष्यों के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए, अपनी सरकार को विवश करना होगा। पिछले सवा साल में हमने कांग्रेस बनाम भाजपा के खेल की परिणति चुनावों में देखी है। खूब लड़े होंगे या परिणामों की फेहरिस्त में अपने-अपने विमर्श, तर्क और तंज लेकर एक दूसरे को कोस रहे होंगे, लेकिन याद रखना होगा कि हिमाचल एक संसाधन विहीन राज्य है जिसे आत्मनिर्भरता का आत्मविश्वास दिलाने के लिए सांसदों, विधायकों और राज्य सरकार को एक साथ प्रयास करना होगा। शांता कुमार की सरकार ने जब विद्युत परियोजनाओं से मुफ्त बिजली की रायल्टी हासिल की, उस समय केंद्र में कांग्रेस सरकार थी, इसलिए अब वाटर सैस की फाइल को मंजूर कराने के अलावा अन्य अधिकार दिलाने के लिए भाजपा सांसदों को अपनी भूमिका का विस्तार करना पड़ेगा।

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