अंतर्राष्ट्रीय

सऊदी अरब में फंसी कई प्रवासी महिलाएं…

Duabi: सऊदी अरब में कई प्रवासी महिलाएं अपनी घर वापसी का इंतजार कर रही हैं, लेकिन उनके लिए यहाँ से निकलना अब मुश्किल होता जा रहा है। इनमें से कई महिलाएं यौन शोषण, शारीरिक प्रताड़ना और अन्य कारणों से परेशान हैं और अब घर लौटने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन दस्तावेज़ों की कमी और कानूनी समस्याएं उनकी राह में बाधा बन रही हैं। सऊदी अरब में फातिमा (बदला हुआ नाम), जो केन्या की निवासी हैं, ने अपने अनुभव को साझा किया। फातिमा ने बताया कि जब वह लेबर पेन से परेशान थीं, तो अस्पताल गईं, लेकिन अस्पताल के स्टाफ ने उन्हें पुलिस को बुलाने की धमकी दी क्योंकि उनके पास आवश्यक दस्तावेज़ नहीं थे। फातिमा ने डर के कारण अस्पताल से बाहर आकर अपने किराए के घर पर बच्चे को जन्म दिया। इस दौरान उन्हें अपनी जान और बच्चे के जीवन का बहुत डर था क्योंकि उनके पास कोई मदद नहीं थी।

फातिमा ने बताया कि वह सऊदी अरब में घरेलू कामकाजी के रूप में काम कर रही थीं, जहां उन्हें उनके मालिक द्वारा यौन शोषण और शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़ा। मालिक ने उनका पासपोर्ट भी छीन लिया, जिसके कारण वह सऊदी अरब से बाहर जाने में असमर्थ थीं। उन्होंने पिछले दो वर्षों से सऊदी अरब छोड़ने की कोशिश की, लेकिन उनके बेटे का इलाज और स्कूलिंग न हो पाने के कारण यह यात्रा अब और भी मुश्किल हो गई है। सऊदी अरब में शादी से बाहर यौन संबंध रखना एक अपराध माना जाता है। इसके कारण विवाहेतर संबंधों से जन्मे बच्चों को बर्थ सर्टिफिकेट नहीं मिल पाता, जिससे वे शिक्षा, चिकित्सा और अन्य मूलभूत अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। यही कारण है कि फातिमा और जैसी कई अन्य महिलाएं अपने बच्चों के साथ सऊदी अरब में फंसी हुई हैं, क्योंकि उनके बच्चे बिना दस्तावेज़ों के ‘स्टेटलेस’ हैं। इन बच्चों को न तो स्कूल भेजा जा सकता है, न ही अस्पताल में इलाज मिल सकता है, और न ही वे अपने माता-पिता के साथ सऊदी अरब से बाहर जा सकते हैं।

इसी साल अप्रैल में रियाद के पास मनफुहाह में कई प्रवासी सिंगल मदर्स ने सार्वजनिक प्रदर्शन किया। इन महिलाओं ने सऊदी प्रशासन से घर वापस भेजने की अपील की, लेकिन सऊदी अरब में विरोध प्रदर्शन गैरकानूनी है और इसके लिए सजा हो सकती है। प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना था कि सऊदी प्रशासन न तो उनके बच्चों की परवाह करता है, न ही उनकी मांओं की। उनका कहना था कि, “हम अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं, वे अपने बचपन में पढ़ाई का अवसर खो रहे हैं।” मानवाधिकार समूहों का कहना है कि खाड़ी देशों में इस तरह के बच्चों की संख्या हजारों में हो सकती है। उनका कहना है कि, भले ही बच्चों के जन्म की परिस्थितियाँ कैसी भी हों, उन्हें पहचान और सुरक्षा पाने का पूरा अधिकार है। इन महिलाओं ने केन्याई दूतावास पर गंभीर आरोप लगाए हैं। एक महिला ने बताया कि दूतावास के कर्मचारियों ने उन्हें प्रॉस्टीट्यूट कहकर उनका अपमान किया और मदद नहीं की।

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