संपादकीय

NTA,अमल का सवाल

नैशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) अब केवल कॉम्पिटिटिव एंट्रेंस एग्जाम कराएगी। माना जा रहा है कि एजेंसी का वर्कलोड कम होने से वह ज्यादा फोकस्ड होकर काम कर पाएगी। यह कदम NTA की साख को बचाने और इस साल हुए पेपर लीक कांड की वजह से इमेज पर लगे धब्बे को मिटाने के लिए जरूरी भी था।

ज्यादा बोझ: इस साल NEET विवाद के बाद सरकार ने जो समिति गठित की थी, उसकी सिफारिश है कि क्षमता बढ़ाने के बाद ही एजेंसी को बाकी परीक्षाओं का आयोजन करना चाहिए। इस संस्था की स्थापना राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षाओं में पारदर्शिता, विश्वसनीयता और एक समान प्रणाली सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी। यह विचार अपने आप में ठीक है कि किसी प्रतियोगी परीक्षा में देशभर के स्टूडेंट्स को एक जैसा मौका मिलना चाहिए। हालांकि इस पर अमल में बहुत सारी गड़बड़ियां पाई गईं।

NEET पर निर्णय: NEET पेपर लीक को लेकर देश में जिस तरह का हंगामा हुआ था और कई राज्यों में विवाद खड़े हुए, उसे NTA का सबसे लो पॉइंट कह सकते हैं। इसने स्टूडेंट्स के विश्वास को हिलाकर रख दिया। यही वजह है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने खासतौर पर NEET का जिक्र करते हुए कहा कि इसे किस मोड में करवाना चाहिए, इस पर बातचीत चल रही है।

सिफारिशों पर अमल: ISRO के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित समिति ने साफ-सुथरी परीक्षा के लिए कई और सुझाव दिए हैं। परीक्षा केंद्र चुनने के लिए डेटा एनालिटिक्स का प्रयोग, पेपर लीक जैसी घटनाओं से बचने के लिए हाइब्रिड मॉडल जिसमें कंप्यूटर के साथ पेन-पेपर का भी इस्तेमाल हो और डिजी यात्रा की तर्ज पर डिजी एग्जाम जैसे उपाय नैशनल टेस्टिंग एजेंसी के काम को और बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।

सबसे बढ़कर छात्र: नैशनल टेस्टिंग एजेंसी ने 2024 में 29 परीक्षाएं आयोजित कीं, जिनमें 85.78 लाख स्टूडेंट्स रजिस्टर्ड थे। हालांकि 2023 के मुकाबले यह आंकड़ा काफी कम है। तब एजेंसी ने 66 परीक्षाएं संभाली थीं और उनमें 1.33 करोड़ स्टूडेंट्स ने रजिस्ट्रेशन कराया था। ये नंबर अपने आप में जाहिर कर देते हैं कि NTA पर कितनी अहम जिम्मेदारी है। लाखों बच्चों का भविष्य सीधे उससे जुड़ा हुआ है। परिणाम तो बाद की बात है, पहले यह जरूरी है कि परीक्षा कराई कैसे जाती है। और इस नुक्ते पर आकर बच्चों की महीनों की मेहनत, भविष्य के सपने और उम्मीदें- सब कुछ NTA पर टिके होते हैं। इसमें दो राय नहीं कि ये सिफारिशें पहली नजर में उपयुक्त लग रही हैं, लेकिन इनकी असल परीक्षा व्यवहार में ही होनी है। देखना होगा कि इन सिफारिशों पर कितना सुसंगत अमल हो पाता है।

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