देश-विदेश में प्रासंगिक श्रीमद्भगवद गीता…
आधुनिक जीवनशैली की नैतिक उलझनों का निराकरण भगवदगीता में समाहित है। अनुशासन, निडरता व स्वाभिमान से जीवन जीने को प्रोत्साहन प्रदान करने वाला दार्शनिक ग्रंथ भगवदगीता इसीलिए विश्व में प्रेरणा व मार्गदर्शक बना है। देश के हुक्मरानों को गीता के उपदेश का अनुपालन करना होगा…
श्रीकृष्ण तथा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन का कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर संवाद श्रीमद्भगवदगीता वैश्विक स्तर पर प्रेरणा बन चुका है। करोड़ों लोग भगवदगीता के प्रति सम्मान भाव रखते हैं। सबसे ताकतवर मुल्कों में शुमार अमेरिका की ‘नेशनल इंटेलीजैंस एजेंसी’ की प्रमुख ‘तुलसी गबार्ड’ ने सन् 2016 में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में सांसद पद की शपथ गीता पर हाथ रखकर ली थी। अमेरिका की नेशनल गार्ड यूनिट में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर तुलसी गबार्ड इराक व कुवैत जैसे देशों में सैन्य मिशन का हिस्सा रह चुकी हैं। ब्रिटेन की संसद ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में कश्मीरी पंडितों के पलायन तथा वर्तमान में बांग्लादेशी हिंदुओं की आवाज बुलंद करने वाले ब्रिटिश सांसद ‘बॉब ब्लैकमैन’ ‘पद्मश्री’ ने सन् 2020 में सांसद पद की शपथ गीता पर हाथ रखकर ली थी। बॉब ब्लैकमैन ने ही कश्मीर पलायन को नरसंहार की श्रेणी में रखने की मांग की थी। ‘ऋषि सुनक’ ने हाउस ऑफ कॉमन्स में ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद की शपथ गीता पर हाथ रखकर ली थी। ऋषि सुनक के अनुसार तनावपूर्ण हालात में गीता कत्र्तव्य पथ पर अडिग रहने का ज्ञान प्रदान करती है। आस्ट्रेलिया के भारतवंशी सांसद ‘डेनियल मुखे’ ने सन् 2015 में तथा वल्र्ड बैंक के पूर्व सलाहकार बैरिस्टर ‘वरुण घोष’ ने इसी वर्ष आस्टे्रलिया की संसद में सीनेटर पद की शपथ गीता पर हाथ रखकर ग्रहण की थी।
अमेरिका के मैरीलैंड राज्य की गर्वनर ‘अरुणा मिलर’ तथा ब्रिटेन की सांसद ‘शिवानी राजा’ व ‘कनिष्क नारायण’ जैसे भगवद्गीता को साक्षी मानकर शपथ लेने वाले भारतीय मूल के विश्व में कई नेता हैं। अमेरिका की ‘सुनीता विलियम्स’ व हालीवुड अदाकार ‘बिल स्मिथ’ जैसे विदेशी लोग गीता को प्रेरणा मानते हैं। मशहूर वैज्ञानिक ‘होमी जहांगीर भाभा’ भी गीता को प्रेरणास्रोत ग्रंथ मानते थे। ओपेनहाइमर ने विज्ञान के कई रहस्यों को समझने में भगवदगीता से प्रेरणा ली थी। परमाणु परीक्षण के बाद ओपेनहाइमर को श्रीकृष्ण का विराट रूप याद आया था। भगवदगीता का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है। मगर भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म निरपेक्षता की चिल्मन तथा वोट बैंक की सियासत के चलते ज्ञान का सागर भगवदगीता तथा वैदिक साहित्य उपेक्षित हो चुके हैं। देश में कई संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों, सुरक्षा एजेंसियों, सर्वोच्च न्यायलय, भारतीय संसद व सेना के आदर्श वाक्य भगवदगीता, रामायण, महाभारत व उपनिषदों से लिए गए हैं। रामायण व महाभारत जैसे महाकाव्यों पर फिल्में व सीरियल बनाकर बालीवुड के अदाकार करोड़ों रुपए कमा लेते हैं। धार्मिक मुद्दों को आधार बनाकर सियासी रहनुमां लोकतंत्र के शीर्ष पर विराजमान हो जाते हैं। चंद्रवंशी व सूर्यवंशी क्षत्रियों की शौर्यगाथाओं का गुणगान करके तथाकथित धर्माचार्य करोड़ों रुपए कमा रहे हैं। धर्म के नाम पर टीवी चैनलों की भरमार है। लेकिन धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर श्रीकृष्ण का प्रेरणादायक उपदेश भगवदगीता व अन्य धर्मग्रंथों का ज्ञान शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बना। खेलों में विशेष योगदान के लिए ‘द्रोर्णाचार्य अवार्ड’ प्रदान किए जाते हैं, परंतु गुरु द्रोर्णाचार्य की ‘चक्रव्यूह’ जैसी युद्ध संरचनाओं पर कभी शोध नहीं हुआ। भारतीय सेना के कई टैंकों, मिसाइलों व हथियारों के नाम रामायण व महाभारत काल के महान् योद्धाओं तथा उनके अचूक मारक क्षमता वाले अस्त्र-शस्त्रों के नाम से जाने जाते हैं, मगर पाशुपातास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, आग्नेयास्त्र व गरुड़ास्त्र जैसे पूरी कायनात का संतुलन बिगाडऩे वाले विध्वंसक दिव्यास्त्रों की मारक क्षमता पर गहन अध्ययन नहीं हुआ। अर्जुन, अश्वथामा, बर्बरीक, कर्ण व अभिमन्यु जैसे महापराक्रमी योद्धाओं के शौर्य पराक्रम पर विवेचना नहीं हुई। गंगापुत्र भीष्म, भगदत्त व बाहलीक जैसे महाभारत युद्ध के वयोवृद्ध योद्धाओं की शक्ति व अदम्य साहस पर विश्लेषण नहीं हुआ।
देश में महिला सशक्तिकरण की वकालत जोर-शोर से होती है, लेकिन प्राचीन गांधार जनपद की राजकुमारी तथा कौरवों की माता ‘गांधारी’ जैसी सशक्त महिला के मजबूत जज्बातों को समझने की कोशिश नहीं की जाती। महाभारत युद्ध में अपने निन्यानवें पुत्रों की वीरगति के बाद गांधारी ने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को पांडवों के समक्ष संधि-समझौता, युद्ध विराम या आत्मसर्मपण करने की सलाह नहीं दी, बल्कि परम शिव भक्त गांधारी ने अपने तपोबल व निगाहों के तेज से दुर्योधन को वज्र बनाकर युद्धभूमि में जाने के लिए प्रेरित करके क्षत्रिय धर्म का पालन किया था। यदि वर्तमान में युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति व संस्कारों से विमुख होकर बॉलीवुड के अदाकारों को अपना आदर्श मान रही है, छात्र वर्ग महत्वाकांक्षाओं के बोझ में भ्रमित होकर अपने जीवन का लक्ष्य भूलकर आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा रहे हैं, तो स्वीकार करना होगा कि भारतीय समाज शाश्वत ज्ञान से भरपूर भगवदगीता जैसे वन्दनीय ग्रंथ के ज्ञान से महरूम रहकर भौतिकतावादी जीवनशैली व पश्चिमी तहजीब का गुलाम बन चुका है। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को माध्यम बनाकर दिया गया गीता का ज्ञान समस्त विश्व के लिए सार्थक व उपयोगी सिद्ध हुआ है। कर्म-धर्म व कत्र्तव्य मार्ग पर चलने का उपदेश देने वाली गीता में जीवन जीने की कला का ज्ञान भी मौजूद है।
गीता का उपदेश है कि जीवन में संघर्षरत होकर चुनौतियों का सामना करने से ही सफलता प्राप्त होती है। यदि खुद पर भरोसा करके, मन पर नियंत्रण रखकर, लक्ष्य पर पूरी लगन से ध्यान हो तथा कर्म में निरंतर संघर्ष हो तो सफलता निश्चित है। यह ज्ञान छात्र वर्ग के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है। अत: आधुनिक जीवनशैली की नैतिक उलझनों का निराकरण भगवदगीता में समाहित है। अनुशासन, निडरता व स्वाभिमान से जीवन जीने को प्रोत्साहन प्रदान करने वाला दार्शनिक ग्रंथ भगवदगीता इसीलिए विश्व में प्रेरणा व मार्गदर्शक बना है। भारत के पड़ोस में अराजकता का दौर चरम पर है। लिहाजा देश के हुक्मरानों को राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए अर्जुन की तरह भगवदगीता के उपदेश का अनुपालन करना होगा।-प्रताप सिंह पटियाल