सीरिया, भारत बेफिक्र नहीं
सीरिया में रविवार को जिस तरह से इस्लामी विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा किया और राष्ट्रपति बशर अल-असद देश छोड़ने को मजबूर हुए, वह अप्रत्याशित तो है ही, पूरे पश्चिम एशिया के लिए अनिश्चितता के एक नए सिलसिले की शुरुआत साबित हो सकता है। इस प्रकरण में कई ऐसे पहलू हैं, जो भारत की चिंता से सीधे तौर पर जुड़ते हैं।
एक सेकुलर शासक
चाहे राष्ट्रपति बशर अल-असद हों या उनके पिता हाफिज अल-बशर, दोनों निरंकुश माने जाते रहे, लेकिन सीरिया में दोनों ने सेकुलर नीति अपनाई। उनके शासन काल में इस्लामी कट्टरपंथियों पर अंकुश बना रहा। अब उनकी जगह काबिज हुए इस्लामी विद्रोहियों के संभावित रुख को लेकर दुनिया भर में आशंकाएं हैं। सीरिया में उनकी वजह से ISIS जैसे आतंकवादी समूह के फिर से सिर उठाने का डर पैदा हो गया है। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या आने वाले दौर में भारतीय उपमहाद्वीप में आतंकी तत्वों की सक्रियता बढ़ने वाली है।
कश्मीर पर सपोर्ट
सीरिया के साथ भारत के आर्थिक रिश्ते भले ही ज्यादा प्रगाढ़ न हुए हों, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोनों एकजुट रहे हैं। यही नहीं, बशर अल-असद ने कश्मीर के सवाल पर हमेशा भारत का साथ दिया। यहां तक कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर भी सीरिया ने कहा था कि यह भारत का आंतरिक मामला है और किसी भी देश को अपने भूभाग में नागरिकों की हिफाजत के लिए जरूरी कदम उठाने का पूरा अधिकार है। देखना होगा कि बदले हालात में सीरिया के रुख में किस तरह का और कितना बदलाव आता है।
तुर्किये का प्रभाव
विद्रोही गुटों को हासिल तुर्किये के कथित समर्थन को देखते हुए कुछ एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि सीरिया के नए निजाम की नीतियों पर उसका प्रभाव दिखेगा। अच्छी बात यह है कि तुर्किये के साथ भी भारत के रिश्तों में पिछले कुछ समय में सुधार देखा जा रहा है। जहां कश्मीर पर उसके रुख में नरमी आई है, वहीं भारत ने भी ब्रिक्स में तुर्किये की एंट्री को रोकने का प्रयास नहीं किया।
अखंडता और संप्रभुता
सीरिया के घटनाक्रम पर भारत ने जिस तत्परता से अपना रुख स्पष्ट किया, वह भी काफी कुछ कहता है। 24 घंटे के अंदर ही विदेश मंत्रालय ने सीरिया की एकता, अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रखने की जरूरत बताते हुए कहा कि मसले का हल निकालने की प्रक्रिया न केवल शांतिपूर्ण बल्कि सीरिया की अगुआई वाली और समाज के सभी तबकों के हितों का ध्यान रखने वाली होनी चाहिए। जाहिर है, सीरिया मामले से जुड़े अपने हितों को लेकर भारत संवेदनशील और गंभीर है।