I.N.D.I.A.?, नेतृत्व को लेकर शुरू हुई तू-तू मैं-मैं…
विपक्ष अपने आचरण से संदेश दे रहा है कि उसे विरोधियों की जरूरत नहीं, वह खुद ही आत्मघात कर सकता है। हर दल चुनाव में जीत की खातिर ही उतरता है, मगर हार-जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बेहतरी के लिए हर हार से सबक सीखना भी जरूरी है। लेकिन कारणों पर सार्वजनिक ‘तू-तू, मैं-मैं’ परिपक्व राजनीति का उदाहरण हरगिज नहीं। लोकसभा चुनाव में BJP को अकेले दम बहुमत से वंचित करने से उत्साहित विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. में, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की हार के बाद जैसा हाहाकार नजर आ रहा है, वह उसकी साख पर ही सवालिया निशान लगाने वाला है।
अपने सांसद कल्याण बनर्जी के बाद अब खुद तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री रहते हुए ही विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. का नेतृत्व करने की इच्छा सार्वजनिक रूप से जता दी है। मराठा दिग्गज शरद पवार ने ममता को नेतृत्व क्षमता का प्रमाणपत्र देने में भी देर नहीं लगाई। अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव ने स्वयं कुछ न भी कहा हो, पर SP और AAP के प्रवक्ता जिस तरह I.N.D.I.A. के नेतृत्व के लिए अपने-अपने नेता की पैरवी करने लगे हैं, वह अनायास नहीं है।
महाराष्ट्र में तो SP नेता अबू आजमी ने I.N.D.I.A. के स्थानीय संस्करण महायुति से इस आधार पर अलग होने का फैसला भी सुना दिया है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने बाबरी विध्वंस की बरसी पर खुशी जताने वाला विज्ञापन दिया और एक विधान पार्षद ने सोशल मीडिया पर ऐसा ही पोस्ट किया। बाला साहेब ठाकरे द्वारा बनाई गई शिवसेना का हिंदुत्व और अयोध्या मुद्दे पर स्टैंड जगजाहिर रहा है। फिर अचानक अब SP क्यों जागी? जब दो साल से भी ज्यादा समय तक उद्धव महायुति सरकार के मुख्यमंत्री रहे, तब भी उनके स्टैंड में किसी बदलाव का संकेत नहीं था। वैसे चुनाव बाद महायुति की सरकार बनी होती, तब भी क्या अबू आजमी उससे बाहर जाने का फैसला करते?
नरेंद्र मोदी की सरकार और BJP की बढ़ती ताकत से त्रस्त जो विपक्ष एकता के लिए मजबूर हुआ था, उसके संभावित बिखराव के कारण भी उसके अंदर ही निहित हैं। तकनीकी रूप से यह सच है कि पिछले साल 17-18 जुलाई को ही दो दर्जन विपक्षी दलों का गठबंधन I.N.D.I.A. अस्तित्व में आ गया था, पर वह कभी जमीन पर दिखा क्या? जिस बैठक में यह महत्वाकांक्षी नामकरण किया गया, उसी में संयोजक, संचालन समिति और साझा न्यूनतम कार्यक्रम तय करने की भी बात हुई थी, पर सोलह महीने में उतना भी नहीं हो पाया।
अविश्वास की नींव पर विश्वास की बुलंद इमारत नहीं खड़ी की जा सकती। इसका पहला संकेत पिछले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों से ही मिल गया था, जब जीत के अति आत्मविश्वास पर सवार कांग्रेस ने I.N.D.I.A. के अन्य घटक दलों को प्रतीकात्मक रूप से भी कुछ सीटें देना उचित नहीं समझा। ऐसे में सामूहिक चुनाव प्रचार के उलट SP और AAP जैसे घटकों ने बड़ी संख्या में अपने उम्मीदवार भी उतारे। कारण तो कई रहे होंगे, पर परिणाम तीनों राज्यों में कांग्रेस की पराजय के रूप में ही सामने आए। दूसरा बड़ा संकेत इस साल के शुरू में मिला, जब विपक्षी एकता के सूत्रधार नजर आ रहे नीतीश कुमार और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी पाला बदल कर BJP नीत NDA में चले गए।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार के झटके से संभली कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में सहयोगियों और छोटे दलों के साथ सीटों का बंटवारा किया। 370 या 400 पार के नारे के बीच जिस तरह BJP 240 सीटों पर ही ठहर गई, उसे I.N.D.I.A. की सफलता भी माना जा सकता है। उसका असर संसद के पहले सत्र में भी दिखा, पर अक्टूबर में हरियाणा और नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मिली हार से वह मनोबल ढहता नजर आ रहा है।
बेशक दो बेहद महत्वपूर्ण राज्यों की हार बड़ा सदमा है, लेकिन जिस तरह कांग्रेस अपने ही सहयोगियों के भी निशाने पर नजर आ रही है, उसकी भी अपनी कहानी है। दरअसल, चुनाव-दर-चुनाव यह धारणा पुष्ट होती जा रही है कि कांग्रेस मन से नहीं, मजबूरी में अन्य दलों को साथ लेती है। यह भी कि कांग्रेस ही विपक्षी एकता की सबसे कमजोर कड़ी है, जो अपने ऐतिहासिक पराभव काल में भी, स्वर्णिम अतीत में जीती हुई ज्यादा- से-ज्यादा सीटें लड़ना चाहती है। हालांकि BJP से सीधे मुकाबले में जीतने का उसका रेकॉर्ड सबसे खराब है।
बेशक, विपक्षी दलों में सबसे ज्यादा तीन राज्यों- हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना – में कांग्रेस की ही सरकार है, पर शेष राज्यों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस के बजाय अन्य छोटे और क्षेत्रीय दल, BJP को ज्यादा कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इनमें से ज्यादातर दल कांग्रेस के पराभव से ही मजबूत हुए हैं। इसलिए कांग्रेस की एक हद से ज्यादा मजबूती उन्हें अपने भविष्य के लिए भी शुभ नहीं लगती, जबकि कांग्रेस अपनी खोई जमीन पाने की फिराक में रहती है। यह परस्पर अविश्वास और शह-मात ही विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. की सबसे बड़ी विडंबना है, जिससे उबरने की कोई सूरत नजर नहीं आती।-राज कुमार सिंह