महाराष्ट्र

घटक दलों से आंतरिक प्रतिस्पर्धा की बनी रहेगी चुनौती

मंत्रिमंडल के गठन से लेकर तमाम गतिविधियों में महायुति में आंतरिक प्रतिस्पर्धा होना स्वाभाविक है। स्थानीय निकाय चुनाव में भी ताकत और वर्चस्व के लिए खींचतान, रूठना- मनाना दिख सकता है। इन परिस्थितियों पर संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी फडणवीस पर ही होगी।

महाराष्ट्र में अपने विस्तार की इच्छा रखने वाली बीजेपी के लिए विधानसभा के नतीजों के बाद देंवेद्र फडणवीस के नाम पर शीर्ष नेतृत्व की सहमति होना स्वाभाविक था। आखिरकार देवेंद्र फडणवीस ने तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे में कुर्सियां बदल गई। हालांकि, प्रचंड बहुमत के बाद महायुति की राज्य सरकार जिस सहजता से बन जानी चाहिए थी उसमें एकनाथ शिंदे को सहमत कराने में 11 दिन लग गए।

महायुति के प्रचंड बहुमत का श्रेय देवेंद्र फडणवीस को मिला। उन्होंने हर मोड़ पर शीर्ष नेतृत्व का भी भरोसा जीता। लोकसभा के परिणाम के बाद विधानसभा चुनाव महायुति के लिए काफी कठिन माना जा रहा था। महाविकास अघाड़ी से अकेले ढाई गुना सीट मिलने पर आभास हो गया था अब बीजेपी नेतृत्व अपने पास ही रखेगी। केवल जातीय समीकरणों की बिसात पर अगर मराठा नेता को नेतृत्व सौंपने की जरूरत होती तब फैसला बदल सकता था। इसके साथ ही यह संदेश दिया है कि पार्टी अपने लक्ष्यों को भूली नहीं है।

लोकसभा चुनाव के परिणाम के साथ ही बीजेपी ने महाराष्ट्र पर फोकस कर दिया था। निश्चित आरएसएस भी महाराष्ट्र में सक्रिय हुआ। सीटों के समीकरणों के साथ कार्यकर्ताओं को धरातल पर काम करने के लिए प्रेरित किया गया। सहयोगी दलों के साथ अधिकतम सहमति के सिद्धांत पर काम किया गया। बीजेपी ने जिस सनातन के पहलू पर अपना फोकस किया राज्य में उसकी सबसे बड़ी आवाज देवेंद्र फडणवीस ही बने। बेशक रणनीतियों पर मुहर शीर्ष स्तर पर लगी हो लेकिन इसके सूत्रधार देवेंद्र फडणवीस ही रहे। एनडीए की सफलता में लाड़की बहन योजना, वोट का धुव्रीकरण, मोदी योगी का करिश्मा, अमित शाह का रणऩीतिक चातुर्य काम आया हो लेकिन महाराष्ट्र में जीत के प्रांगण को सजाने की असली जिम्मेदारी देवेद्र फडणवीस को ही सौंपी गई थी। देवेंद्र फडणवीस के सामने कई अलग ढंग की चुनौतियां भी थी। मराठा आरक्षण की सियासत में एनसीपी नेता शरद पवार अगर किसी को उलझाना चाहते थे तो वह देवेंद्र फडणवीस ही थे। बेशक राज्य में एनडीए सरकार ने मराठा आरक्षण के मसले को सुझलाने के लिए अपने स्तर पर पहल कर दी थी। लेकिन मराठा आंदोलन में कुछ ऐसे जटिल पेंच कसे गए थे कि महाराष्ट्र विदर्भ के इस नेता के लिए यह चक्रव्यूह बन सकता था।

देवेंद्र फडणवीस ने पार्टी के अंदर और बाहर दोनों मोर्चों पर सधे हुए राजनेता की तरह कदम बढाए। 2014 में पहली बार सत्ता मिली तो उसे बेहतर ढंग चलाने की कोशिश की। महाराष्ट्र के नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम पर सरकार से दूर हुए तो विपक्ष के तेजतर्रार नेता के बतौर अपनी छवि को सामने रखा। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने शिंदे को सत्ता सौंपने का निर्णय लिया तो अनुशासित कार्य़कर्ता की तरह सहमति जताई। शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर वह शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बनने को तैयार हो गए। साथ ही उनकी एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ भी बेहतर केमिस्ट्री रही। देवेंद्र फडणवीस पार्टी के अंदर विपरीत खेमों को भी अपने ढंग से साधते रहे।

बीजेपी इस बात का आकलन करती रही है कि महाराष्ट्र की सियासत में शरद पवार किसी न किसी तरह एक धुरी बने रहते हैं। ऐसे में मराठा नेता शरद पवार के सामने बीजेपी का कोई नेता दमखम से सामने आ सकता था तो प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे के बाद देवेंद्र फडणवीस में यह क्षमता देखी गई। राज्य में नेतृत्व के लिए चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े चंद्रकांता पाटिल और मुरलीधर मोहोल के नामों की भी चर्चा अलग अलग तरह से चली। लेकिन बीजेपी और संघ ने कई पहलुओं को देखते हुए आखिर देवेंद्र फडणवीस पर ही सहमति बनाई।

महायुति के सामने महाविकास अघाड़ी के आकड़े भले ही झूल रहे हों लेकिन यह लड़ाई का अंत नहीं है। सही मायनों में शिवसेना बीजेपी के 1988 में एक मंच पर आने के बाद बीजेपी ने 2014 में एक मुकाम हासिल किया। 2019 में शिवसेना ने महसूस किया कि बीजेपी को नेतृत्व देकर वह सत्ता की भागीदार तो होगी लेकिन उसका संगठन दरकता चला जाएगा। ऐसे में वह कांग्रेस एनसीपी के पाले में जाने के लिए भी तैयार हो गई। लेकिन परिस्थितियां इस तरह बदली कि बगावत से निकली शिंदे शिवसेना धरातल पर भी ज्यादा मजबूत दिखी। इसी तरह एनसीपी अजित की बिसात में असली नकली का खेल ही बदल गया। आगे वर्चस्व बनाने का यह संघर्ष कई कोणों पर दिख सकता है।

गौरतलब है कि जिस तरह चुनाव परिणाम के बाद शिंदे शिवसेना के तेवर दिखे हैं उसमें फडणवीस को आगे सजग रहना होगा। एकनाथ शिंदे के डिप्टी सीएम बनने के लिए जिस तरह लंबी कवायद चली उसमें आगे के लिए भी कुछ संकेत मिल जाते हैं। शिंदे शिवसेना की खींचतान बीजेपी से ज्यादा एनसीपी के साथ दिख सकती है। ऐसे में मंत्रिमंडल के गठन से लेकर आगे की तमाम गतिविधियों में महायुति में आंतरिक प्रतिस्पर्धा होना स्वाभाविक है। खासकर स्थानीय निकाय के चुनाव में भी अपनी ताकत और वर्चस्व के लिए खींचतान रूठना मनाना दिख सकता है। ऐसे में इन परिस्थितियों पर संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी देवेंद्र फडणवीस पर ही होगी।

महाराष्ट्र के आगे की सियासत में बीजेपी के लिए सरकार, संगठन और संघ में तारतम्य बनाने के साथ साथ साथी घटकों को साधने की भी जरूरत है। ऐसे में बीजेपी ने इस चुनौती भरे काम के लिए देवेंद्र फडणवीस की ओर देखा है। देवेंद्र फडणवीस के लिए इस दौर पर कुछ कठिन चुनौतियां भी हैं तो वोट की आंधी ने कुछ सहूलियत भी दी है। वर्ष 2019 में देवेंद्र फडणवीस ने सत्ता छिनने पर कहा था मैं समुद्र हूं लौट आऊंगा। आज सत्ता उनके हाथ में है। राज्य की बेहतरी के लिए अभिनव प्रयोग देवेंद्र फडणवीस को करने होंगे।-वेद विलास उनियाल

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