सचिन क्रिकेट का भगवान, विनोद बेबस-लाचार-असहाय इंसान…
सचिन रमेश तेंदुलकर… अनुशासन और मेहनत से दौलत, शोहरत और क्रिकेट का भगवान। विनोद गणपत कांबली… बुरी आदतें और कुसंगति से बेबस, लाचार और असहाय इंसान। यह सिर्फ किस्मत नहीं है। सचिन की सफलता और कांबली की असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। वे एक ही गुरु के पास क्रिकेट सीखे। एक ही समय में करियर का आगाज किया। उनकी उम्र भी लगभग एक (एक-डेढ़ साल का अंतर है) ही है। सचिन अपनी खूबियों और मेहनत से करोड़ों दिलों पर राज करते हैं। लाखों युवाओं के हीरो हैं। वहीं, कांबली कम उम्र में ही बूढ़े हो चले हैं। लाचार हैं। वह टैलेंट किस तरह से बर्बाद हो सकता है इसका खौफनाक उदाहरण हैं।
मशहूर शिवाजी पार्क में दिवंगत गुरु रमाकांत आचरेकर स्मारक का अनावरण होना था। महान सचिन रमेश तेंदुलकर भी पहुंचे थे तो उनके बाल सखा विनोद कांबली को भी बुलाया गया था। एक उम्र होने के बावजूद उनकी बॉडी लैंग्वेज, बातचीत के तरीके और रहन-सहन में जमीन आसमान का अंतर था। सचिन आज भी क्रिकेट का बल्ला थामे अक्सर अपने चाहने वालों का सपना पूरा करने के लिए क्रिकेट मैदान पर दिख जाते हैं तो दूसरी ओर विनोद कांबली को कोई कोचिंग स्टाफ तक में शामिल नहीं करना चाहता। वह अपनी बुरी आदतों से सब कुछ गंवा चुके हैं।
वायरल वीडियो में दिखता है कि सचिन अपने दोस्त से इवेंट से पहले और बाद में दोनों समय मिलते दिखे। संभव है कि कुशल-क्षेम पूछा होगा। कांबली चाहते थे कि सचिन उनके पास बैठें, हो सकता है सचिन भी यही चाहते रहे हों, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके। इवेंट में कांबली बड़ी मुश्किल से बोल पा रहे थे। उन्हें देखने के बाद कोई भी बेबसी और लाचारी को महसूस कर सकता है, जो उन्हें बुरी आदतों और नशे के आगोश में डूब जाने से मिला।
एक समय था जब क्रिकेट की दुनिया में दो बच्चों के नामों का डंका बज रहा था। स्कूल क्रिकेट में उन्होंने 24 फरवरी 1988 को शारदाश्रम विद्यामंदिर की ओर से खेलते हुए सेंट जेवियर्स के खिलाफ मुंबई स्कूल स्पोर्ट्स असोसिएशन के एक टूर्नामेंट में 664 रनों की साझेदारी की थी। 16 साल के विनोद कांबली के नाम नाबाद 349 रन थे तो 14 साल के सचिन के नाम नॉटआउट 326 रन थे। इसके बाद इन दोनों ने मुंबई के लिए डोमेस्टिक डेब्यू किया। फिर इंटरनेशनल क्रिकेट में साथ खेले, लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि विनोद कांबली का क्रिकेट करियर दिखावटी चकाचौंध में खो सा गया, दूसरी ओर, सचिन धूमकेतू बनकर क्रिकेट की दुनिया पर छाते चले गए। अपने छोटे कदमों से सफलता मापते चले गए।
बैटिंग लीजेंड्स डॉन ब्रैडमैन, सुनील गावस्कर और विवियन रिचर्ड्स तक ने सचिन को खुद का प्रतिरूप बताया तो विनोद कांबली मायानगरी मुंबई की गलियों में अपनी नशे की लत और बुरी आदतों से शर्मसार होते चले गए। कभी वह शराब के नशे में गिर गए तो कभी झगड़े में दिखे। ऐसा नहीं था कि उस समय इंडियन प्रीमियर लीग थी, जो फिलहाल युवा क्रिकेटरों के घर बोरा भर पैसे पहुंचाती है। न ही भारतीय क्रिकेट बोर्ड इतना अमीर था। बावजूद इसके विनोद कांबली रास्ता भटक गए।
कहने को तो लोग यह भी कहते हैं कि विनोद कांबली अपने दोस्त सचिन से अधिक टैलेंटड थे। अगर उनका करियर आगे बढ़ता वह क्रिकेट पर राज करते। बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में भारत को सितारा मिला था, लेकिन कहावत है न कि ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय’। कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। गॉड गिफ्टेड टैलेंट के धनी होने के बावजूद शराब के नशे में डूबे विनोद कांबली बर्बादी की ओर चल पड़े थे। उनके पास पाने को बहुत कुछ था, लेकिन वह खोते चले गए। दूसरी ओर, मराठी कवि और उपन्यासकार के बेटे सचिन ने मेहनत और अनुशासन से ऐसी पटकथा लिखी, जिसे आने वाले हजारों सालों तक हर बच्चा पढ़ना चाहेगा। उनका किरदार निभाना चाहेगा।