महाराष्ट्र : बड़े वायदे और कर्ज का लगातार बढ़ता अनुपात…
जिस तरह से एकनाथ शिंदे ने नई सरकार के गठन का फैसला भाजपा नेतृत्व पर छोडऩे की घोषणा की, उसे राजनीतिक हलकों में शिंदे का सरैंडर कहा गया। पर क्या एकनाथ शिंदे सचमुच हथियार डाल चुके हैं। नई सरकार के गठन में पूरी तरह से भाजपा की ही चलेगी। ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचा जाना चाहिए।
विधानसभा चुनाव का नतीजा आए छठा दिन भी बीत गया है और प्रचंड जीत के बाद भी अभी तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के नाम की औपचारिक घोषणा नहीं हो पाई। यह एक बड़ा संकेत है कि सारा मामला एक तरफा नहीं हो सकता। इसमें कोई शक नहीं है कि 88.5 फीसदी के स्ट्राइक रेट के साथ भाजपा ने चुनाव में जो 132 सीटें जीतीं, उसने सहयोगियों की मोल-तोल की ताकत को कम कर दिया। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि मोल-तोल की गुंजाइश पूरी तरह खत्म हो गई है। इस बड़ी जीत के बाद भी महाराष्ट्र में सरकार चलाना भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। यह चुनौती सिर्फ राजनीतिक नहीं है। शिंदे गुट और अजित पवार दोनों के पास भले ही पिछली बार से ज्यादा सीटें हैं मगर उनका कद अब वैसा नहीं है। भाजपा अब उनके लिए अभिभावक की तरह होगी। वे सिर्फ भाजपा को अपनी पसंद बता सकते हैं, मगर दोनों को भाजपा हाईकमान जो देगा, उससे ही संतोष करना होगा। महाराष्ट्र में सरकार चलाने वाले को आर्थिक चुनौतियों और जनता की आकांक्षा पर खरा उतरना होगा। बड़ी जीत के साथ जनता की बड़ी उम्मीद भी जागती है। महाराष्ट्र में भी ऐसा होगा क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान बहुत बड़े-बड़े वायदे किए गए हैं।
2024-25 के बजट अनुमान के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार का कुल कर्ज 7.82 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने वाला है। यह वर्ष 2014 में महज 2.94 लाख करोड़ रुपए था। महाराष्ट्र सरकार पर जितना कर्ज है, वह उसकी कुल जी.डी.पी. का 18.35 फीसदी है। यह पिछले साल 17.26 फीसदी था। यानी कर्ज का अनुपात लगातार बढ़ रहा है। कैग की रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र सरकार को अपने कुल कर्ज में से पौने 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज तो अगले 7 साल में चुकाना होगा। इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार की आमदनी और खर्च का अंतर यानी राजकोषीय घाटा भी मान्य 3 फीसदी के पैमाने को पार कर चुका है। प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी भी मानते हैं कि अब राज्य सरकार कोई नया वित्तीय बोझ उठाने की स्थिति में नहीं है। इसका एक बड़ा उदाहरण भी मौजूद है। कुछ समय पहले जब महाराष्ट्र में 1781 करोड़ रुपए से खेल कॉम्पलैक्स बनाने का प्रस्ताव प्रदेश खेल मंत्रालय ने भेजा तो राज्य के वित्त मंत्रालय ने साफ लिखा कि राज्य सरकार वित्तीय दबाव में है और नया खर्च बढ़ाने की स्थिति में नहीं है।
अब बात करते हैं महाराष्ट्र चुनाव की गेम चेंजर योजना ‘लाडकी बहिन योजना’ की। इसके तहत महिलाओं को 2100 रुपए हर महीने दिए जाने हैं। इससे 63000 करोड़ रुपए सालाना खर्च बढऩे का अनुमान है। हालांकि शिंदे सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले यह योजना शुरू कर दी थी और 1500 रुपए महीना महिलाओं को दिया गया। इसके प्रचार पर भी महायुति सरकार ने 200 करोड़ रुपए खर्च किए। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गत 4 अक्तूबर को नागपुर में एक कार्यक्रम में साफ कहा था कि ‘लाडकी बहिन योजना’ के चलते राज्य सरकार को एम.एस.एम.ई. उद्योगों को सबसिडी का पैसा देने में मुश्किल आ सकती है। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि सरकार पर निर्भर मत रहिए। सत्ता में चाहे कोई भी पार्टी हो, सरकार विषकन्या के समान होती है। अगर आप सरकार पर बहुत अधिक निर्भर रहेंगे तो आप बर्बाद हो जाएंगे।
सिर्फ ‘लाडकी बहिन योजना’ ही नहीं चुनाव जीतने के लिए भाजपा और उनके सहयोगियों ने अंधाधुंध वायदे किए। इनमें ‘लड़का भाई’ योजना के अलावा किसानों का कर्ज माफ करना, किसानों की सम्मान निधि की राशि 12000 रुपए से बढ़ाकर 15000 रुपए करना, 10 लाख छात्रों को 10 हजार रुपए प्रति महीना मानदेय देना, गरीब परिवारों के लिए अक्षय अन्न योजना तथा एस.सी.-एस.टी. और ओ.बी.सी. के लोगों को नया कारोबार शुरू करने के लिए बिना ब्याज का 15 लाख रुपए तक का कर्ज देना आदि शामिल हैं। महाराष्ट्र को देश के सबसे अमीर राज्यों में शुमार किया जाता है। राज्य का सकल घरेलू उत्पादन (जी.एस.डी.पी.) 31 ट्रिलियन रुपए है। इस तरह 20 ट्रिलियन रुपए जी.एस.डी.पी. वाले तमिलनाडु और गुजरात से आगे है। इस सबके बावजूद मुफ्त रेवडिय़ों का बोझ ढोने में महाराष्ट्र सक्षम नहीं है। अगर महाराष्ट्र का यह हाल है तो बाकी देश का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
ऐसे में नई राज्य सरकार के सामने बड़ी चुनौती यह होगी कि वह अपने सभी वायदे कैसे पूरे करे। इसके लिए या तो उसे केंद्र से बड़ी मदद की जरूरत होगी या फिर वायदों से समझौता करना होगा। अगर वायदों को पूरा करने में देरी होती है तो जनता के बीच असंतोष और नकारात्मक माहौल बनेगा। इससे सरकार के लिए नई समस्याएं पैदा होंगी। मराठा आरक्षण के लिए लंबे समय तक अनशन करने वाले मनोज जरांगे हालांकि विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ शांत नजर आए मगर वह कब तक शांत रहेंगे, कहा नहीं जा सकता। किसान महाराष्ट्र में एक बड़ी ताकत हैं। फसलों के सही मूल्य को लेकर उनकी परेशानियां बनी रहती हैं। कुल मिलाकर महाराष्ट्र की सत्ता किसी के लिए भी सिर्फ फूलों का ताज नहीं होने जा रही।-अकु श्रीवास्तव