64 साल की राजनीति की ‘आखिरी बाजी’ में मात कैसे खा गए शरद पवार, वजह अहम
नई दिल्ली: हाल ही में महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के आखिरी दौर के वक्त राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि मुझसे पंगा लेना भारी पड़ सकता है। जिन लोगों ने मेरा साथ विश्वासघात किया है उन्हें सबक सिखाना जरूरी है। आज जब महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे सामने आए तो शरद पवार की पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है। शरद पवार की पार्टी को महज 12 सीटों पर जीत मिलती दिख रही है। इस बुरी हार के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या 84 साल के शरद पवार अब राजनीति से संन्यास लेंगे? क्या यह उनका आखिरी चुनाव होकर रह जाएगा? सियासत की आखिरी बाजी में शरद पवार कैसे मात खा गए? इसे समझते हैं।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की वोटिंग से पहले NCP के संस्थापक शरद पवार ने चुनावी राजनीति से संन्यास के संकेत दिए थे। पवार ने कहा है कि अब वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, हालांकि पार्टी संगठन का काम देखते रहेंगे। यानी NCP (SP) चीफ के पद पर काम करते रहेंगे। 84 साल के शरद पवार ने बारामती में मंगलवार को कहा, ‘कहीं तो रुकना ही पड़ेगा। मुझे अब चुनाव नहीं लड़ना है। अब नए लोगों को आगे आना चाहिए। मैंने अभी तक 14 बार चुनाव लड़ा है। अब मुझे सत्ता नहीं चाहिए। मैं समाज के लिए काम करना चाहता हूं। विचार करूंगा कि राज्यसभा जाना है या नहीं।’ अब महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों के बाद उनकी पार्टी को महज 12 सीटों पर ही जीत मिलती दिख रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह चुनाव उनके लिए आखिरी होगा।
शरद पवार का पूरा नाम शरदचंद्र गोविंदराव पवार है। वह 4 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह पीवी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में भी रहे हैं। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में वह कृषि मंत्री भी रहे हैं।
1960 में शरद पवार ने कांग्रेस से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1960 में कांग्रेसी नेता केशवराव जेधे का निधन हुआ और बारामती लोकसभा सीट खाली हो गई। उपचुनाव में पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया यानी PWP ने शरद के बड़े भाई बसंतराव पवार को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस ने गुलाबराव जेधे को उम्मीदवार बनाया। उस वक्त वाईबी चव्हाण महाराष्ट्र के CM थे। उन्होंने बारामती सीट को अपनी साख का मुद्दा बना लिया था।
शरद पवार अपनी किताब ‘अपनी शर्तों पर’ में लिखते हैं कि मेरा भाई कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार था। हर कोई सोच रहा था कि मैं क्या करूंगा? बड़ी मुश्किल स्थिति थी। भाई बसंतराव ने मेरी परेशानी समझ ली। उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि तुम कांग्रेस की विचारधारा के लिए समर्पित हो। मेरे खिलाफ प्रचार करने में संकोच मत करो। इसके बाद मैंने कांग्रेस के चुनाव प्रचार में जान लगा दी और गुलाबराव जेधे की जीत हुई। महज 27 साल की उम्र में शरद पवार 1967 में बारामती विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। पिछले 5 दशकों में शरद पवार 14 चुनाव जीत चुके हैं।