क्या गर्भवती महिलाओं के लिए थैलेसिमिया स्क्रीनिंग जरूरी है? क्यों यह टेस्ट है जरूरी!
थैलेसिमिया एक जेनेटिक बीमारी है जो बच्चों को उनके माता-पिता से मिलती है. ये बीमारी बच्चों में तीन महीने की उम्र के बाद पहचानी जाती है, लेकिन इसके लक्षण बहुत जल्दी दिखने लगते हैं. इस बीमारी में रेड ब्लड सेल्स की कमी होती है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता. इसके कारण बच्चे में कमजोरी और थकावट जैसी समस्याएं होती हैं.
थैलेसिमिया के लक्षण
डॉ. राजेश पटेल के अनुसार, थैलेसिमिया के कारण एनीमिया की समस्या काफी गंभीर हो सकती है और ये खासतौर पर महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है. इस बीमारी में अक्सर खून और आयरन सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी इससे भी समस्या हल नहीं होती.
थैलेसिमिया से बचने के उपाय
थैलेसिमिया से बचने के लिए सबसे पहले गर्भवती महिला को एएनसी (ANC) कराना जरूरी है, फिर थैलेसिमिया मिनर और मेजर का टेस्ट कराना चाहिए. हर जगह थैलेसिमिया और सिकल सेल स्क्रीनिंग की जाती है, जो बहुत जरूरी है.
थैलेसिमिया के दो प्रकार होते हैं: अल्फा और बीटा. अगर मां का थैलेसिमिया पॉजिटिव है, तो पिता का भी टेस्ट करवाना चाहिए ताकि बच्चे को यह समस्या ना हो. यह टेस्ट शादी से पहले करवा लेना बहुत अच्छा है. अगर केवल एक जीन म्यूटेटेड हो तो ज्यादा समस्या नहीं होती, लेकिन अगर दोनों जीन म्यूटेटेड हों, तो और ज्यादा दिक्कतें आ सकती हैं.
गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग का महत्व
जब जीन म्यूटेटेड होते हैं, तो समस्या और भी गंभीर हो जाती है. यह तब होता है जब दोनों माता-पिता से एक-एक जीन बच्चे को मिलता है. इसलिए गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग बहुत जरूरी है. यह एकमात्र तरीका है जिससे इस बीमारी से बचा जा सकता है. अगर दोनों माता-पिता में से कोई एक बड़ा जेनेटिक फैक्टर हो, तो बच्चे में भी थैलेसिमिया का खतरा हो सकता है. इसे सिर्फ जेनेटिक टेस्टिंग से ही पता चल सकता है.