संपादकीय

 बांग्लादेश में अटॉर्नी जनरल ने धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद शब्द हटाने छेड़ी बहस

 बांग्लादेश में अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने यह कहकर एक नई बहस शुरू कर दी है कि वहां के संविधान से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों को हटा देना चाहिए। अटॉर्नी जनरल का यह प्रस्ताव ऐसे समय आया है जब अवामी लीग की शेख हसीना सरकार को गिरे कुछ महीने ही हुए हैं और बांग्लादेश में अभी अंतरिम सरकार चल रही है। इस प्रस्ताव से यह चिंता गहरी हो गई है कि क्या बांग्लादेश एक इस्लामी राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है।

भारतीय उपमहाद्वीप और खासकर विभाजन के संदर्भ में देखें तो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश- तीनों का साझा इतिहास है। ऐसे में अंग्रेजी उपनिवेशवाद से मुक्ति के बाद जहां भारत ने लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ने का फैसला किया, वहीं पाकिस्तान को इस्लामी राष्ट्र का रास्ता भाया। बांग्लादेश की खासियत यह रही कि शुरू में पाकिस्तान का हिस्सा रहते हुए इस्लामी राष्ट्र का अनुभव लेने के बाद वह उससे अलग हुआ और उसने अपने लिए धार्मिक रूप से उदार राष्ट्र के स्वरूप को बेहतर माना।

बांग्लादेश के संदर्भ में यह बात ज्यादा मायने इसलिए भी रखती है कि एक देश के रूप में उसका जन्म ही धार्मिक उदारता जैसे मूल्यों की सार्थकता सिद्ध करता है। पाकिस्तान के अलग अस्तित्व के पीछे यह मान्यता थी कि धर्म एक राष्ट्र के बनने का ठोस आधार है। भारत ने विभाजन को स्वीकार करते हुए भी इस मान्यता को ठुकरा दिया। बांग्लादेश के एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय ने एक बार फिर इस बात की पुष्टि कर दी कि सिर्फ धर्म किसी राष्ट्र के निर्माण की बुनियाद नहीं हो सकता।

तीनों देशों की अब तक की यात्रा के उतार-चढ़ावों पर गौर करें तो उससे भी यह बात स्थापित होती है कि धार्मिक कट्टरता किसी देश को सुख, शांति और समृद्धि की ओर नहीं ले जाती। पाकिस्तान में जिस तरह से लोकतंत्र की राह पर लौटने की कोशिशें बार-बार नाकाम होती रही हैं उससे साफ है धार्मिक कट्टरता के गड्ढे में गिरना जितना आसान है, उससे निकलना उतना ही मुश्किल। बांग्लादेश ने पिछले करीब एक दशक में जिस तरह से विकास के कीर्तिमान बनाते हुए ह्यूमन डिवेलपमेंट इंडेक्स में अपनी स्थिति सुधारी, उसके पीछे भी धार्मिक कट्टरता से दूरी की एक प्रमुख भूमिका मानी जाती रही है।

सच है कि आज दुनिया के कई इलाकों में धार्मिक कट्टरता का जोर बढ़ रहा है। उसी तर्ज पर अपने देश में भी अक्सर धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिशें कुछ हलकों से होती हैं। लेकिन यह बात याद रखने की है कि धर्म चाहे जो भी हो, कट्टरता अपनी विशेषता नहीं छोड़ती। उसके बिछाए जाल को समझना और उससे दूरी बनाए रखना हर देश और समाज के विकास की बुनियादी शर्त है।

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