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रोजगार राष्ट्रीय सम्मेलन में जुटे दिग्गज, देश के हर गांव-शहर में रोजगार पर होगा संवाद

राष्ट्रीय राजधानी में रोजगार अधिकार अभियान को लेकर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ।सम्मेलन में अभियान संचालन के लिए 19 सदस्यीय समिति का गठन किया गया। भविष्य में इसके विस्तार का भी निर्णय हुआ। साथ ही इसकी मदद के लिए किसान, मजदूर, महिला, कर्मचारी, पर्यावरण आदि आंदोलन के प्रतिनिधियों, जनपक्षीय अर्थशास्त्रियों, अधिवक्ताओं और नागरिकों को लेकर सलाहकार समिति के गठन पर भी विचार किया गया।

सुपर रिच की संपत्ति पर समुचित टैक्स लगाने, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की गारंटी करने, देशभर में  सरकारी विभागों में खाली पदों को तत्काल भरने और हर व्यक्ति के सम्मानजनक जीवन की गारंटी करने के सवाल सोमवार को नई दिल्ली के गांधी पीस फाऊंडेशन में एक परिचर्चा आयोजित हुई। इस दौरान बीते तीन माह से पूरे देश में चलाए जा रहे  रोजगार अधिकार अभियान के प्रथम चरण के समापन एक बैठक भी आयोजित हुई। इस बैठक की अध्यक्षता टीना, डॉ. संत प्रकाश, राजेश सचान, डीवाईएफआई के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष संजीव कुमार, कर्नाटक के सरवन, अंकित भारद्वाज ने की।


सम्मेलन सर्वसम्मति से इस निर्णय पर पहुंचा कि रोजगार का सवाल राजनीति अर्थनीति से जुड़ा हुआ है। छात्रों—युवाओं के साथ समाज के बड़े हिस्से को बेरोजगारी का सवाल प्रभावित करता है। सम्मेलन यह मानता है कि देश में संसाधनों की कोई कमी नहीं है। संसाधन जुटाए जा सकते हैं यदि बड़े पूंजी घरानों की सम्पत्ति पर समुचित टैक्स लगाया जाए और उचित अर्थनीति बने। इन संसाधनों से छात्रों व युवाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की गारंटी होगी। साथ ही पुरानी पेंशन बहाली, आंगनवाड़ी, आशा कार्यकत्रियों समेत सभी स्कीम वर्कर्स और ठेका/संविदा पर काम करने वाले मजदूरों को पक्की नौकरी व सम्मानजनक वेतनमान, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी व खेती सहित छोटे मझोले उद्योगों के सहकारीकरण के लिए निवेश और नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा जैसे सवालों को हल किया जा सकता है।


सम्मेलन की सह बैठक ने लिए प्रस्ताव में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जमाने में बनाए गए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 को बड़ी पूंजी के पक्ष में बनाया गया कानून माना। बावजूद इसके यदि पूंजीपतियों पर उचित टैक्स लगाया जाए तो राजकोषीय घाटे के इस कानून की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। सम्मेलन सह बैठक देश भर में छात्रों-युवाओं के साथ समाज के अन्य तबकों से संवाद करेगा और एक अर्थपूर्ण अभियान शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के अधिकार एवं जनपक्षीय अर्थनीति के लिए चलाएगा।


इस संवाद अभियान में राज्य, जोन, जिला व कैम्पसों में सम्मेलन किये जाएंगे। सम्मेलन में रोजगार अधिकार अभियान के संचालन के लिए 19 सदस्यीय संचालन समिति का गठन किया और भविष्य में इसके विस्तार का निर्णय हुआ। साथ ही इसकी मदद के लिए किसान, मजदूर, महिला, कर्मचारी, पर्यावरण आदि आंदोलन के प्रतिनिधियों, जनपक्षीय अर्थशास्त्रियों, अधिवक्ताओं और नागरिकों को लेकर सलाहकार समिति के गठन पर विचार किया गया। अभी तक जिन लोगों ने सलाहकार समिति में रहने की सहमति दी है उनमें भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव एस. पी. शुक्ला, अर्थशास्त्री प्रोफेसर प्रभात पटनायक, प्रोफेसर अरूण कुमार, वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अखिलेन्द्र प्रताप सिंह, अर्थशास्त्री जया मेहता, उमाकांत आदि हैं। अभियान के चार मुद्दों से जो भी सहमति व्यक्त करेगा वह इस अभियान का हिस्सा बनेगा।


सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर प्रभात पटनायक में कहा कि देश के हर नागरिक के सम्मानजनक जीवन की गारंटी करना सरकार की जिम्मेदारी है। यदि देश के चंद कॉर्पोरेट घरानों की संपत्ति पर महज 2 प्रतिशत संपत्ति कर और 30 प्रतिशत विरासत कर लगा दिया जाए तो देश के हर नागरिक को पांच संवैधानिक अधिकारों की गारंटी हो सकती है। जिसमें रोजगार का अधिकार, भोजन का अधिकार, बेहतर और मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार, वृद्ध व्यक्तियों को पेंशन का अधिकार मिल सकता है। उनका कहना था कि इस टैक्स से लोगों की सामाजिक सुरक्षा की गारंटी होगी और लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी।


प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि देश में संसाधनों की कोई कमी नहीं है। आज जो हालात है उसने छोटे मझौले उद्योगों और असंगठित क्षेत्र को बर्बाद करके रख दिया है। जबकि देश का ज्यादातर हिस्सा अभी भी असंगठित क्षेत्र में ही काम कर रहा है। ऐसी स्थिति में यदि कॉरपोरेट घरानों पर टैक्स लगा तो देश में समृद्ध आ सकती है। उन्होंने कहा कि टीना फैक्टर की बात बेमानी है देश में वैकल्पिक नीतियों का निर्माण किया जा सकता है और देश की सम्प्रभुता की रक्षा की जा सकती है।


सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि आज जरूरत है कि बढ़ रहे पूंजी के एकाधिकार को खत्म किया जाए। उन्होंने कहा कि देश में बहुत बड़ी संख्या ठेका मजदूरों की है जिन्हें न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिल पा रही है। सरकार को रोजगार के अधिकार का कानून बनाना चाहिए और हर नागरिक के रोजगार की गारंटी की जाए और यदि सरकार रोजगार न दे पाए तो कम से कम न्यूनतम मजदूरी का आधा बेरोजगारी भत्ते के रूप में दिया जाए।


इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि पुराने दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है और नई परिस्थिति के अनुसार प्रैक्सिस पर काम करना होगा। उन्होंने कहा कि आज देश में पावर और वैल्थ कुछ लोगों के हाथ में संकेन्द्रित हो गई है और जब यह होगा तो लोकतंत्र भी सुरक्षित नहीं रह पाएगा। इसलिए रोजगार का यह आंदोलन लोकतंत्र को बचाने का भी आंदोलन है।


गांधी शांति प्रतिष्ठान के डायरेक्टर कुमार प्रशांत ने कहा कि लोकतांत्रिक दायरे को लगातार कमजोर किया जा रहा है इसे बचाने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि रोजगार का आंदोलन जनता की नब्ज को पकड़ने का आंदोलन है और इसका विस्तार पूरे देश में होगा। नजरिया के संपादक रहमान ने इस देश भर में फैलाने की जरूर को रेखांकित किया।सम्मेलन को किसान नेता पूरन सिंह, राष्ट्रीय कुली मोर्चा के कोऑर्डिनेटर राम सुरेश यादव, प्रतियोगी छात्रों के नेता अनिल सिंह, डीएलएड मोर्चा के रजत सिंह, आदिवासी युवा सविता गोंड, टेक्निकल युवाओं के नेता आरबी सिंह पटेल, किसान सभा के विमल त्रिवेदी, माध्यमिक शिक्षक संघ के सुरेंद्र पांडे, भगत सिंह स्टूडेंट मोर्चा की इप्शिता, डॉक्टर प्रभात कुमार, प्रगतिशील युवा मंच की निशा, राकेश, जैनुल आब्दीन, बागीश धर राय, मोहित कुमार, मेजर हिमांशु सिंह ने संबोधित किया। सम्मेलन में वरिष्ठ समाजसेवी दीपक ढोलकिया और समाजवादी विजय प्रताप भी मौजूद रहे।

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