राजनीति

चुनावी वादों का बोझ उठा पाएंगे महाराष्ट्र और झारखंड?

नई दिल्ली: लड़की बहिन योजना, किसानों की कर्ज माफी, कम बिजली बिल, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और मुफ्त गैस सिलिंडर जैसे चुनावी वादे महाराष्ट्र और झारखंड में गूंज रहे हैं। इनकी धमक आने वाले दिनों में इनके सरकारी खजाने को सहनी पड़ सकती है। फ्रीबीज या रेवड़ियों की परिभाषा भले ही तय न की जा सकी हो, ऐसे कदमों से राज्यों की माली हालत पर असर पड़ता ही है। मध्य प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में यह देखा जा चुका है।

महाराष्ट्र में जिस लड़की बहिन योजना के तहत विपक्षी गठबंधन मौजूदा 1500 रुपये के बजाय 2000 रुपये महीना और सत्तारूढ़ गठबंधन 2100 रुपये महीना देने के वादे कर रहे हैं, उसे मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना की तर्ज पर शुरू किया गया था। इस स्कीम ने बीजेपी को चुनावी फायदा तो दिया, लेकिन ऐसे चुनावी वादों का नतीजा यह हुआ कि पिछले वित्त वर्ष में एमपी को जमकर उधार लेना पड़ा और उसका कुल कर्ज 4 लाख 18 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया और इस साल 94000 करोड़ रुपये से अधिक कर्ज लेना पड़ सकता है।

महाराष्ट्र का हाल यह है कि मौजूदा वित्त वर्ष के लिए महिला एवं बाल कल्याण विभाग की योजनाओं में जहां 4677 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, वहीं केवल लड़की बहिन योजना पर सालाना 46000 करोड़ रुपये खर्च होने हैं, वह भी 1500 रुपये महीने के आधार पर। राज्य की माली हालत यह है कि पिछले वित्त वर्ष के रिवाइज्ड एस्टिमेट के मुताबिक इसका राजकोषीय घाटा इसके GDP के 2.8% पर था और मौजूदा वित्त वर्ष के बजट में कहा गया था कि यह 2.6% रहेगा।

जुलाई में पेश बजट में 1.1 लाख करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे का अनुमान दिया गया था, जो बाद में पास कराई गई करीब 95000 हजार करोड़ की पूरक मांग के चलते 2 लाख करोड़ रुपये के पार जा सकता है। पिछले वित्त वर्ष में तमाम सब्सिडी में लगभग 46000 करोड़ रुपये दिए गए थे और चुनावी साल के बजट में शिंदे सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं के लिए करीब 96000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। अब नए चुनावी वादों का बोझ भी पड़ेगा। इससे कैपिटल एक्सपेंडिचर पर आंच आ सकती है, जिसका हिस्सा कुल खर्च में पिछले साल के बजट से इस बार पहले ही कम हो चुका है।

उधर, झारखंड में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 1.28 लाख करोड़ रुपये का जो बजट पारित किया गया था, उसमें पहले ही कृषि कर्ज माफी की सीमा 50 हजार से बढ़ाकर 2 लाख रुपये की जा चुकी है। 2023-24 के रिवाइज्ड एस्टिमेट के मुताबिक फिस्कल डेफिसिट राज्य के जीडीपी के 2.7% पर था, जिसके अब 2.02% होने का अनुमान दिया गया। माइनिंग से होने वाली आमदनी के सहारे झारखंड 2016-17 से रेवेन्यू सरप्लस की स्थिति में है। वित्त वर्ष 2024 में झारखंड ने 4800 करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च किए थे। लेकिन जिस तरह हर गरीब महिला को 2100 रुपये से लेकर 2500 रुपये महीने तक देने जैसे वादे किए गए हैं, उनको पूरा करने की बारी आई तो झारखंड का रेवेन्यू सरप्लस स्टेटस खतरे में पड़ सकता है।

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